Monday, December 30, 2013

कशमकश मुहब्बत मे इस कदर,
बताये भी तो कैसे,
छुपाये भी तो कैसे,
यह राज दिल के दिल मे दबाये भी तो कैसे,
वैसे भी छिपने से कब छिप सकी हैं यह खबर, 
कितना ही बढ़ा क्यो न हो तेरा शहर, 
कशमकश मुहब्बत मे इस कदर 

कृते अंकेश
Carving a path or walking on a road
has a slight difference but big discourse 
those who lead or those who walk
even though they follow the very same path
the world is old and the preachers are known 
what matter here is something new 
which only you could have shown
No matter how long is day or night 
keep you promise to bring here light

By Ankesh

Monday, December 16, 2013


तुम मुझको बताती रही
अपनी बातें
क्यों तुम नाराज़ थी इतना
क्यों नहीं चाहती थी तुम कि लोग उनको छोड़ दे
और कैसे अचानक से हुआ था फिर  यह  फैसला
और  गए थे सर्दियों की उस रात में तुम घूमने
और रही तुम देखती रंग बिरंगी मछलिया
आज भी तुम ढूंढती हो एक किनारा फिर कही
और क्यों नहीं तुमने ख़रीदा हार वो बेशकीमती
तुमने बताना चाहा था मुझको हमेशा कुछ नया
लेकिन मैंने तुमको सिर्फ तुमको
और हमेशा तुमको ही सुना

कृते अंकेश

Sunday, December 15, 2013


सो रही थी एक सुबह
रात भर देखा नहीं
जागकर  दिन चल पड़ा
और इसका कुछ पता नहीं

सांझ भी गायब रही
दिन ने उसकी राह तकी
थककर जब वो चल दिया
रात आती हुई मिली

क्या हुआ था विश्व को
सब कुछ अचानक हो रहा
दिन बदल रहा रात को
और सुबह को खो रहा

कृते अंकेश

बस और नहीं
कहने दो उनको बातें कई
कब न मैंने सुनी या समझी
थी बात उन्होंहने जो कही
लेकिन बस अब और नहीं

कह दो उड़कर जाना था
पिंजरे से पंक्षी को और कही
थी नजरे जिसको  ढूंढ रही
वह नज़र सलाखो से दूर कही
लेकिन बस अब और नहीं

खाली पिंजरे को देखोगे
तो शायद तुम यह समझोगे
यह पिंजर छूट ही जाता है
यह रिश्ता टूट ही जाता है

लेकिन यह सच है जीवन का
शायद तुम भी यह समझोगे
लेकिन बस अब और नहीं

कृते अंकेश

Wednesday, December 04, 2013


कह  रहे सपने यहाँ उड़ते रहे पंखो से तुम
लेकिन विचारो को भी  तुम्हारे पंख लगने चाहिए
देखो पड़े है किस सदी से इन किताबो में छिपे
लगता नहीं अब क्या तुम्हे इन  किताबो को बदलना चाहिए

फेकना लेकिन इन्हे  जाने बिना बिलकुल  नहीं
पहले इनकी असलियत को समझना चाहिए
देखना कितनी सदी पीछे रहे हम ज्ञान में
है समय यह उचित सारे संसोधन होने चाहिए

कृते अंकेश
एक अधूरी सुबह मिली 
कुछ जागी कुछ सोयी रही 
आँखों में थी सपने लिए 
पलकों को न बन्द किये 
उड़ती थी फिर रात उधर 
छूटा था जो साथ इधर 
एक किरण फिर नयी दिखी 
सुबह की तस्वीर छिपी 
दिन का फिर आघात हुआ 
निद्रा हाय विश्वासघात हुआ 

कृते अंकेश

Monday, December 02, 2013

एक हसी,
जो सुधबुध खो दे 
ले जाये सबको बचपन में

एक झलक
तस्वीरे पो दे
ले जाये सबको बचपन में

एक चहक
खुशियो को बो दे
ले जाये सबको बचपन में

नन्ही मुन्नी
कली एक ऐसी
खेला करती तेरे इस आँगन में

कृते अंकेश

Sunday, December 01, 2013


लड़ाइयां तेल की, पानी की
और कभी कभी नादानी की
क्या यही है अगली पीढ़ी के लिए हमारा उपहार
युध्दभूमि पर सजा एक विश्व तैयार
समझोते स्वार्थ के
नाभिकीय शस्त्रो पर खड़े होकर भाषण भाईचारे और प्यार के
क्या यही है हमारा विकास
युध्दभूमि पर सजा एक विश्व तैयार

कृते अंकेश
1


ओ री  सखी कहा मुस्कान छोड़ी
तूने कहा से यह ख़ामोशी ओढ़ी

उड़ते कैशो में कैसी यह गुमसुम
सुन्दर से चेहरे पर छायी क्या उलझन

क्यों चंचलता में उदासी है घोली
तूने कहा से यह ख़ामोशी ओढ़ी

नैना क्यों तेरे तुझको रुलाये
जग सारा तुझको हँसा क्यों न पाये

ओ री  सखी कहा मुस्कान छोड़ी
तूने कहा से यह ख़ामोशी ओढ़ी

भींगी है पलके, ढूंढो किनारा
हो तुम न अकेले, हूँ में तेरा सहारा

चिर परिचित मुस्कराहट, हसी, ठिठोली
खुशियो की सरगम तेरी वह बोली

ओ री  सखी कहा मुस्कान छोड़ी
तूने कहा से यह ख़ामोशी ओढ़ी

कृते अंकेश

Saturday, November 30, 2013


जिनकी कविताओ में श्रृंगार मिला
न उनके जीवन में प्यार मिला
शायद जो कुछ पास रहा उनके
इन शब्दो को वो उपहार मिला

कृते अंकेश

Thursday, November 28, 2013


टुकड़ो में पलती  है सपनो की आशा
कुछ को हताशा, कुछ को निराशा
हमने यह आंसू भी हस के संवारे
कुछ ने उतारे, कुछ ने निकाले
बहती जाती समय की यह धारा
एक  पल तुम्हारा, एक  पल हमारा
उड़ना जो चाहा पंखो से अपने
तुमने पुकारा, खुद को उतारा
डूबा न जाने क्यों फिर दिल तुझमे
जबकि न  तेरा किनारा हमारा

कृते अंकेश

Wednesday, November 27, 2013


बोझिल से पंखो ने चाहा था उड़ना
सपना था मेरा हकीकत को चुनना
इरादो को मेरे खबर ही कहा थी
हकीकत न जाने कहा गुमशुदा थी

उड़ते उड़ते फिर पंखो के पास
बहने लगी जैसे कोई प्यास
फिर से तलाशा सारा आकाश
आया नज़र नहीं कही  विश्वास

उड़ते , उड़ाते,  उड़ता गया
बहते, बहाते जुड़ता गया
टूटा न जाने कितनी बार
रूठा मगर न एक भी बार

कृते अंकेश

Monday, November 25, 2013


कितनी बार टूट सकता है दिल प्यार में
पहली बार था जग सब रूठा
मानो अपना साया छूटा
आकर जैसे कहे तन्हाई
क्यों तुमने थी प्रीत लगाई

फिर कुछ बात अजब थी लेकिन
पहली रात गजब थी लेकिन
दूसरी बार नहीं मन रोया
बस यु लगा कोई अपना खोया

तीसरी चौथी पाचवी छटवी
दिल के टुकड़े बिखर रहे थे
बिखरे टुकड़े छिटक रहे थे
इनके बीच था जीवन चलता
हर पल स्वाभाभिक  सा ढलता

कृते अंकेश

Sunday, November 24, 2013


तुम तक मेरे गीत न पहुचे
तो इसमें दोष  तुम्हारा क्या
मेरे शब्द रहे जो उलझे
तो इसमें दोष तुम्हारा क्या
चाहा तुमने उड़ना सपनो में
तो इसमें दोष तुम्हारा क्या
चाहा जुड़ना तुमने अपनों में
तो इसमें दोष तुम्हारा क्या

में सोचूंगा फुर्सत में फिर
क्या चुनने में गलती की
में ढूंढूंगा शब्दो में फिर
क्या बुनने में गलती की
में देखूँगा सपनो में फिर
क्या रंगने में गलती की
में देखूँगा उन अपनों में फिर
क्या बनने  की गलती की

कृते अंकेश
क्या तुम जानते हो 
मौत कभी वर्तमान में नहीं आती 
और जब वो आती है 
बस अतीत बन कर रह जाती 
इसीलिए ए दोस्त 
न डरो कभी मौत से
बढ़ चलो अपनी मंज़िलो की ओर

जो फिर भी यदि हो जाये सामना
तो न कदमो को अपने थामना
देख तुम्हे फिर मुस्कुरायेगी मौत
जैसे मानो हो महबूब
और कहेगी ज़िंदगी से
तूने इस बार मिलाया किससे खूब

कृते अंकेश

Saturday, November 23, 2013

मेरी बिटिया जब नन्हे पैरो से चढ़ मेरे ऊपर आती 
शायद कुछ दबती उन नन्हे कदमो से मेरी छाती 
पर इन कदमो का अनुभव में जीवंत करूंगा 
उस बचपन को सदा मैं अपने पास रखूंगा 

कृते अंकेश

घेरा उन्होंने मुझको अकेला
वो थे कई और मैं था एक
कहते रहे वो इसके इरादे
लगते हमें अब नहीं है नेक

मरना ही होगा इसको यहाँ अब
जिन्दा है रहना जो हमको सदेव
देखो उड़ा दो वो सारी चिड़िया
पंखो में जिनके सपने अनेक

आये वो फिर यु, छाये वो फिर यु
बादल घने हो नभ में अनेक
बरसे वो जम के, गरजे वो जम के
गए भिंगो मुझको वो सारे देव

उड़ने लगी फिर मेरी यह चिड़िया
जीते वो फिर से, हारा यह देश
बहता रहा जो खू था जमी पर
या थे रहे मिटटी के आंसू अनेक

कृते अंकेश

Thursday, November 21, 2013


और रो पड़ी वो उस रात
जब छोड़ गया बच्चा भी उसका साथ
नहीं सुनी गयी कोई दूसरी आवाज़
 गली का एक कुत्ता आ बैठा देहलीज़ पर चुपचाप

होती रही बरसात
नभ ने भी छलकाये आंसू बार बार
करती रही वो इंतज़ार
नहीं आया कोई अबकी बार

उसके हाथो में सिरहन थी उम्र की
एक थकान थी हताशा की, दुःख की
उसकी आँखों ने खाया था धोखा बार बार
छीना गया था उसका प्यार न जाने कितनी बार

कृते अंकेश

Wednesday, November 20, 2013


मित्र बनाते है सीढ़िया
चलकर जिन पर आसानी से ऊचे  उठ जाते है हम
देते है हरदम साथ
और लगता नहीं रास्ता लम्बा
जो लगती है ठोकर
तो उठा लेते है पल भर मैं
वो रहते है हमेशा हमारे  हृदयो में
उनके बिना जिंदगी रह  जायेगी एक अधूरी सीढ़ी
उतरेंगे भी कैसे अकेले इस पर से
पल भी लगेगा न जाने  कितना लम्बा
और सोचो क्या ही होगा हाल हमारे ह्रदय का

कृते अंकेश

Tuesday, November 19, 2013

एक फासला है तुझमे, मुझमे 
तू जीतती है, में हारता हूँ 
होती शुरू तुझसे है मेरी सरगम 
तुझमे ही जा अंत पुकारता हूँ 
एक फासला है तुझमे मुझमे 
तू जीतती है, में हारता हूँ 

ख्वाबो के पंखो को तूने जो खोला 
नयनो से अपने मुझको टटोला 
चाहा था दिल ने तुझको बताना 
सपना था मेरा तुझको ही पाना
अब दूर तुझसे खुद को मारता हूँ
तू जीतती है, में हारता हूँ

कृते अंकेश

सचिन
एक नाम नहीं
एक आवाज़ है
जो गूंजी
अनेको बार गूंजी
विश्वाश के साथ गूंजी
गांधी के बाद शायद पहली बार ऐसा हुआ
जब पूरा भारत एक इंसान के पीछे चल पड़ा
जीत और हार से दूर उसने हमें संघर्ष करना सिखाया
किसी भी तरह कि परिस्थिति में सामना करना सिखाया
सचिन से भारत को  केवल क्रिकेट में कुछ जीत नहीं
बल्कि प्रत्येक भारतीय को आत्मविश्वाश मिला
प्रेरणा मिली
श्रेष्ठ  बनने  की
विश्व में सर्वश्रेष्ठ बनने  की

कृते अंकेश

Saturday, November 16, 2013

एक अँधेरा है सघन छाया हुआ 
लग रहा जैसे कि कोई आया हुआ 
जो उजाले से न अब तक है हारा 
सो गया जबकि यह शेष जग सारा 

ले तिमिर कि चादरों को वो उढ़ाता है 
थक चुके जग को ढांढस बंधाता है 
रोकता है फिर दिवस को शीघ्र आने से 
विश्व की कर्म वेदी को फिर सजाने से 

देखता है रात्रि का खेल वो सारा
फिर बिछुड़ने को चलेगा जग यह दोबारा
फिर मिलन की राह को वो रात लाएगा
पर भला क्या वो दिवस का साथ पायेगा

कृते अंकेश
नग्न सबके है चरित्र 
और अस्थिया ढकी हुई 
कपड़ो के व्यापारी यहाँ 
बड़े होशियार निकले 

कृते अंकेश
करने दो लोगो को ऐसे ही 
जैसे वो करते है 
चलने दो दुनिया को ऐसे ही 
जैसे वो चलती है 
बहने दो नदियो को ऐसे ही 
जैसे वो बहती है 
रहने दो सेनाओ को ऐसे ही 
जैसे वो रहती है 
जब तक कि न तान दी जाये
बंदूके तुम्हारे सरो पर 

कृते अंकेश

Friday, November 15, 2013


वह आते है यदा कदा
दिखाकर स्वप्न छोड़ जाते है हमें यहाँ
कहते है यह नरक में रहना तुम्हारी मज़बूरी है
और इसे  स्वर्ग बनाने के लिए हमें वहा चुनकर भेजना जरूरी है

पीढ़िया दर पीढ़िया
गुजरती  गयी यु ही
न तो नरक कि तस्वीर बदली और न ही स्वर्ग कि उम्मीद बंधी
अब हमें छोड़ना होगा देखना सपना
जब मिला ही नहीं स्वर्ग तो वो काहे का अपना
हम  नरक के फूल है यही खिलेंगे
स्वर्ग की आकांक्षाओ  पर अब नहीं मिटेंगे
करेगे श्रम और सजायेंगे सपना
होगा नेतृत्व अब सिर्फ अपना

कृते अंकेश

Thursday, November 14, 2013


उड़ती रही विषाद विपदा
नीरवता आ संलग्न हुई
मौन रहा छाया बस यु
मानो मृत्यु जीवंत हुई

शुष्क अधर न खुल पाये
आँखों ने छोड़ दिया तकना
साँसे यु चलती अब भी थी
पर लगता था सब कुछ सपना

यह वैराग्य जीवन था करता
शोध प्रेम कि छाया में
महामूर्ख ही रहा यहाँ वह
जिसने ढूंढा इसको काया मैं

कृते अंकेश
यह आत्मा बेचारी 
न जाने कितनी बार हारी 
बदलती रही शरीर 
फिर भी रही कुवारी 
इसकी नियति में 
लिखना है भटकना 
कहते है यह अंश है जिसका 
उसकी है सारी दुनिया 
फिर क्यों इसके हिस्से में 
आयी लाचारी 
यह आत्मा बेचारी
न जाने कितनी बार हारी

कृते अंकेश
उड़ गयी तितली दूर शहर को 
आँखे रही बरसती लेकिन 
उडी भूल वह इस बारिश को 
उड़ गयी तितली दूर शहर को

नए बगीचे मैं जायेगी 
नए आगन मे इतरायेगी 
नए नए फूलो पर उड़ के 
जल्द मुझे भी भूल जायेगी 

उड़ गयी मेरे सपनो की पुढ़िया
उड़ गयी मेरी प्यारी गुड़िया
उड़ गयी तितली दूर शहर को
उड़ गयी तितली दूर शहर को

कृते अंकेश
तुमने कब मुझको अपनाया 
मैंने कब तुमको ठुकराया 
इस जग के नियम मुताबिक 
हमको प्रेमी कौन कहेगा 
फिर क्यों जीवित यह प्रेम रहेगा 

जग क्या जाने प्रेम निभाना 
इसको कब आया अपनाना 
इन शब्दो ने, इन गीतो ने
इसको कितनी बार सिखाया 
कहा समझ यह फिर भी पाया

कृते अंकेश

Wednesday, November 13, 2013


शंख है यह बज रहे
यह ढूढ़ते है किसे
है सो रहा वो कौन है
जगा रहा क्यों मौन है

यह दीप है क्यों जल रहे
है ख्वाब  क्या जो पल रहे
जला रहा वो कौन है
जो जल रहा क्यों मौन है

है आरती यह किसलिए
क्यों बात फिर बदल दिए
है पूज्य जो वो कौन है
जो पूजता क्यों मौन है

कृते अंकेश

Monday, November 11, 2013

एक उम्मीद एक विश्वास 
वर्षो का अथक प्रयास
हिन्द का एक कदम 
चंद्र से आगे, मंगल के पास 

कृते अंकेश
नहीं जाना मुझसे दूर कुछ समय के लिए भी 
कैसे कहूँ लगता है वक़्त लम्बा बहुत इंतज़ार का 
मानो खिड़की खुलने के लिए करता हो इंतज़ार धुआ 
बढ़ता ही जा रहा है अंदर ही अंदर
और घोटने लगा है मेरा ही दम 
शिकायते तुम्हे होगी मुझसे 
लेकिन शिकायते कभी नहीं होती कम 
नहीं छोड़ना कभी भी मुझे 
भटकता ही रहूंगा तुम्हारे बिना 
इधर से उधर 
पूछता
क्या तुम बापिस आओगी
क्या मैं खुद को फिर से पाउँगा

कृते अंकेश
मैंने प्रेम किया था 
ठीक वैसे ही 
जैसे रौशनी निकलती है 
घने जंगलो के बीच 
लड़ते कापते 
लेकिन अपना रास्ता बनाते हुए 
या जैसे चलती है नाव 
किसी चित्र में 
क्षितिज से मिलने के लिए 
लड़ती हुई स्याही से 
या जैसे उड़ते है पक्षी
धरती से ऊपर
बहुत ऊपर
पीछा करते हुए

मैंने प्रेम किया था
जिसे में कभी पा नहीं सका
लेकिन इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता
कि अब जबकि तुम मुझसे दूर हो
रौशनी आज भी जंगलो के बीच से
अपना रास्ता बना ही लेती है
मानो गाती हो तुम्हारा नाम
इन पत्तो के ऊपर से
और लड़ रहा है आज भी वह जहाज
स्याही के साथ
अब जबकि नहीं पता उसे कि जाना कहा है
लेकिन चलता है ऐसे
मानो तुम्हारी आँखे टकटकी लगाये देख रही है इसे
आज भी पक्षी उड़ते है
गाते हुए तुम्हारा ही नाम

कृते अंकेश
चली जाओ 
दूर बहुत दूर 
अगर यही तुम्हारी इच्छा है 

तुम्हारी छवि 
रहेगी सदा 
यु ही सहेजी 
इन बंद आँखों में 
मेरे पास, मेरा अतीत 

कृते अंकेश

इस मिटटी से उठा कभी
इसमें ही मिट जाउंगा
में पौधा इस आँगन का
इसमें ही लहराऊंगा

कृते अंकेश

 इस मिटटी की शाखो से 
हर बगिया ही महकी है 
फूल यहाँ के जहा गिरे 
वो बस्ती ही चहकी है







यह इमारत खड़ी हिन्द की 
उनके गर्म लहू पर 
सौप गए जो जीवन निज का 
इस पावन वेदी पर 
या जिसने इसको है सीचा 
अपने श्रम से बल से 
चमक रही है इसकी आभा 
उनकी मेहनत के फल से

सौभाग्य हिन्द की इस छाया में 
हमने जीवन पाया
मिला बहुत कुछ
और बहुत कुछ करने का मौका आया
पहले अभी स्वयं से
हमको और है आगे बढ़ना
जीत चुके है कुछ सीमा तक
पूर्ण विजित है बनना

अभी हिन्द में पलते है दो
भिन्न भिन्न से चेहरे
एक बढ़ रहा तीव्र विकास से
दूजा लिए घाव है गहरे
प्रश्न बड़ा है अभी समय का
नहीं हमें है रुकना
सोचो लेकिन कैसे सबको
लेकर साथ है चलना

नहीं हमारे पंख है छोटे
और न सपना छोटा
छोटे छोटे इन पैरो को
होगा आगे बढ़ना
मुस्काने अपनी ही होंगी
अपना होगा जीवन
लहरायेगी हिन्द पताका
हर्षित होगा हर एक मन

कृते अंकेश
में उस रात से आगे बढ़कर 
कुछ मांगता अपने लिए 
इससे पहले ही कह दिया तुमने 
कल मिलते है 
सुबह की चमक अँधेरे के 
बहुत से भेद मिटाती है 
लेकिन इस रात की सीमा 
बढ़ती ही जाती है 
माना कि मैंने कई बार 
और भी किया था इंतज़ार 
लेकिन अफ़सोस
नहीं किया था मैंने प्यार

कृते अंकेश

अगर तुम्हे ज़िंदगी का महत्व पता है
और करते हो तुम अपने मन की
अगर तुमने बहुत सी किताबे पड़ी है
और सोचते हो कि बचा अभी भी बहुत कुछ पढ़ने  को
अगर तुमने कभी  सपने  अपने हाथो से सजाये  है
रेत और सीमेंट  को जोड़ कर
अगर तुमने पसीना बहाया है
आराम की ज़िंदगी छोड़ कर
तो जरूरत नहीं होगी तुम्हे परिचय कि मेरे पिता के
कुछ ऐसे ही है वो

कृते अंकेश

Sunday, November 03, 2013


मुझे तुम तक पहुचने से अब कोई नहीं रोक सकता
में तुम्हे देख सकता हूँ इन आँखों के बिना
में सुनता हूँ तुम्हे इन कानो के बंद होने पर भी
अगर काट दिए जाये यह हाथ फिर भी में
अपने ह्रदय से पकड़ ही लूँगा तुम्हे
मेरी आवाज़ पहुँच जायेगी तुम तक
भला काट ही क्यों न दिया जाये मेरी जिव्हा को
जला कर खाक ही क्यों न कर दिया जाये मुझे
मैं समाहित हो जाउंगा तुम्हारे अंदर
मुझे तुम तक पहुचने से अब कोई नहीं रोक सकता

कृते अंकेश

Friday, November 01, 2013

फिर से आयी वो आवाज़े 
जिनसे परदे कर दिल हारा 
कोई गाये उस सरहद पर 
गीत ही हो जैसे बंजारा 

में अनजाना ताल क्या समझू 
मैंने तो सुर भी न जाना 
फिर से उखड़ा, फिर से उभरा 
गीत है जैसे कोई पहचाना 

कृते अंकेश

Thursday, October 31, 2013

छुप जाओ अँधेरी रात में 
कोई आ रहा है हमारी और 
देखते नहीं चंद्रमा भी जा छिपा है 
क्षितिज के उस ओर 
उन कदमो की आवाज़े 
ढूंढती है हमें 
हमारी साँसों की गहराइयाँ 
न जाने कहा जाकर रुके 
क्या देखा ऐसा तुमने 
जो थाम लिया यह हाथ 
मंज़िल दूर है मेरी
क्या निभा सकोगे साथ

कृते अंकेश
कह रहे है लोग आज, इंकलाब चाहिए 
हमें व्यवस्था में अब बदलाव चाहिए 
बहुत सुनी, बहुत सही, घुमा घुमा के जो कही 
कहने वाले अब नहीं, करने वाले चाहिए 
हरा, लाल, नीला, पीला रंग कोई भी चलेगा 
बट चुके है बहुत, अब न जात पात कोई कहेगा 
तोड़ दे गरीबी जो, सामने वही रहे 
है समाधान जहा, बात फिर वही कहे 
इंतज़ार नहीं अब इंक़लाब चाहिए 
हमें व्यवस्था में अब बदलाव चाहिए 

कृते अंकेश

Tuesday, October 29, 2013

पहले भाषा आई फिर भगवान् 
इसीलिए है इतने नाम 
अल्लाह बोलो या बोलो राम 
इनका रचियता है इंसान 
अगर कही वह सर्वशक्तिमान 
यह सारे ही होगे उसके नाम 

कृते अंकेश
भूख से अभी नहीं 
सामना मेरा हुआ 
कैसे बोलो लिख दूं में 
उन करोडो की व्यथा 

लिख सकूंगा जो कभी 
वह तो मात्र अंश है 
यह सभ्यता अभी 
मनुष्यता पर दंश है 

कृते अंकेश

क्या कही देखा है तुमने
उन घुंघराले काले  बालो को
इस जीवन में आस जगाकर
सूने  मन में प्यास जगाकर
आँखों की परिधि में जाकर
जल के स्त्रोत बहाने  वालो को
क्या कही देखा है तुमने
उन घुंघराले काले  बालो को
या निष्ठुर यह खेल है उनके
आँखे तकती जिनके सपने
सपनो को ठुकरा कर पल में
छोड़ साथ  जाने वालो को
क्या कही देखा है तुमने
उन घुंघराले काले  बालो को

कृते अंकेश

Saturday, October 26, 2013

निकले थे घर से खाने को राजस्थानी खाना 
बोला दोस्त निकल गेट से जा दाये मुड जाना 
वही सामने होटल उनका मस्त वहा का खाना 
तबियत खुश हो जाएगी तब ही बापिस आना 
चले मस्त हो हम भी फिर ले सपने ऊचे ऊचे
बस पल भर में गये नापते वो गलिया वो कूंचे 
लेकिन यह क्या यहाँ तो दाए बाए नहीं कुछ दिखता 
थालपकटटू रहा सामने बाए कीचड का गड्डा 
लगे सोचने कहा भला अब जाकर किससे पूछे
अगर समझ ली उसने हिंदी फिर कैसे तमिल को बूझे
सोचा अब जब दिया ओखली में सर तो क्या डरना
आ गए जब इतना आगे तो फिर क्या पीछे मुड़ना
पर शायद किस्मत फूटी थी दिखा सामने होटल
झटपट हम जा पहुचे उसमे दिया फटाफट आर्डर
थाली शायद बरसो से इंतज़ार थी करती
उस पर आध इंच धूल की परत रही थी सजती
कच्ची भिन्डी लाकर बोला यह राजस्थानी खाना
सांभर डाल कटोरी में कहता जैसे खा लो जो है खाना
और करेला संग में उसके मानो इतना कम था
लगा हमें क्या भूल हो गयी क्यों खाने का मन था

कृते अंकेश