Monday, December 30, 2013

कशमकश मुहब्बत मे इस कदर,
बताये भी तो कैसे,
छुपाये भी तो कैसे,
यह राज दिल के दिल मे दबाये भी तो कैसे,
वैसे भी छिपने से कब छिप सकी हैं यह खबर, 
कितना ही बढ़ा क्यो न हो तेरा शहर, 
कशमकश मुहब्बत मे इस कदर 

कृते अंकेश
Carving a path or walking on a road
has a slight difference but big discourse 
those who lead or those who walk
even though they follow the very same path
the world is old and the preachers are known 
what matter here is something new 
which only you could have shown
No matter how long is day or night 
keep you promise to bring here light

By Ankesh

Monday, December 16, 2013


तुम मुझको बताती रही
अपनी बातें
क्यों तुम नाराज़ थी इतना
क्यों नहीं चाहती थी तुम कि लोग उनको छोड़ दे
और कैसे अचानक से हुआ था फिर  यह  फैसला
और  गए थे सर्दियों की उस रात में तुम घूमने
और रही तुम देखती रंग बिरंगी मछलिया
आज भी तुम ढूंढती हो एक किनारा फिर कही
और क्यों नहीं तुमने ख़रीदा हार वो बेशकीमती
तुमने बताना चाहा था मुझको हमेशा कुछ नया
लेकिन मैंने तुमको सिर्फ तुमको
और हमेशा तुमको ही सुना

कृते अंकेश

Sunday, December 15, 2013


सो रही थी एक सुबह
रात भर देखा नहीं
जागकर  दिन चल पड़ा
और इसका कुछ पता नहीं

सांझ भी गायब रही
दिन ने उसकी राह तकी
थककर जब वो चल दिया
रात आती हुई मिली

क्या हुआ था विश्व को
सब कुछ अचानक हो रहा
दिन बदल रहा रात को
और सुबह को खो रहा

कृते अंकेश

बस और नहीं
कहने दो उनको बातें कई
कब न मैंने सुनी या समझी
थी बात उन्होंहने जो कही
लेकिन बस अब और नहीं

कह दो उड़कर जाना था
पिंजरे से पंक्षी को और कही
थी नजरे जिसको  ढूंढ रही
वह नज़र सलाखो से दूर कही
लेकिन बस अब और नहीं

खाली पिंजरे को देखोगे
तो शायद तुम यह समझोगे
यह पिंजर छूट ही जाता है
यह रिश्ता टूट ही जाता है

लेकिन यह सच है जीवन का
शायद तुम भी यह समझोगे
लेकिन बस अब और नहीं

कृते अंकेश

Wednesday, December 04, 2013


कह  रहे सपने यहाँ उड़ते रहे पंखो से तुम
लेकिन विचारो को भी  तुम्हारे पंख लगने चाहिए
देखो पड़े है किस सदी से इन किताबो में छिपे
लगता नहीं अब क्या तुम्हे इन  किताबो को बदलना चाहिए

फेकना लेकिन इन्हे  जाने बिना बिलकुल  नहीं
पहले इनकी असलियत को समझना चाहिए
देखना कितनी सदी पीछे रहे हम ज्ञान में
है समय यह उचित सारे संसोधन होने चाहिए

कृते अंकेश
एक अधूरी सुबह मिली 
कुछ जागी कुछ सोयी रही 
आँखों में थी सपने लिए 
पलकों को न बन्द किये 
उड़ती थी फिर रात उधर 
छूटा था जो साथ इधर 
एक किरण फिर नयी दिखी 
सुबह की तस्वीर छिपी 
दिन का फिर आघात हुआ 
निद्रा हाय विश्वासघात हुआ 

कृते अंकेश

Monday, December 02, 2013

एक हसी,
जो सुधबुध खो दे 
ले जाये सबको बचपन में

एक झलक
तस्वीरे पो दे
ले जाये सबको बचपन में

एक चहक
खुशियो को बो दे
ले जाये सबको बचपन में

नन्ही मुन्नी
कली एक ऐसी
खेला करती तेरे इस आँगन में

कृते अंकेश

Sunday, December 01, 2013


लड़ाइयां तेल की, पानी की
और कभी कभी नादानी की
क्या यही है अगली पीढ़ी के लिए हमारा उपहार
युध्दभूमि पर सजा एक विश्व तैयार
समझोते स्वार्थ के
नाभिकीय शस्त्रो पर खड़े होकर भाषण भाईचारे और प्यार के
क्या यही है हमारा विकास
युध्दभूमि पर सजा एक विश्व तैयार

कृते अंकेश
1


ओ री  सखी कहा मुस्कान छोड़ी
तूने कहा से यह ख़ामोशी ओढ़ी

उड़ते कैशो में कैसी यह गुमसुम
सुन्दर से चेहरे पर छायी क्या उलझन

क्यों चंचलता में उदासी है घोली
तूने कहा से यह ख़ामोशी ओढ़ी

नैना क्यों तेरे तुझको रुलाये
जग सारा तुझको हँसा क्यों न पाये

ओ री  सखी कहा मुस्कान छोड़ी
तूने कहा से यह ख़ामोशी ओढ़ी

भींगी है पलके, ढूंढो किनारा
हो तुम न अकेले, हूँ में तेरा सहारा

चिर परिचित मुस्कराहट, हसी, ठिठोली
खुशियो की सरगम तेरी वह बोली

ओ री  सखी कहा मुस्कान छोड़ी
तूने कहा से यह ख़ामोशी ओढ़ी

कृते अंकेश