Saturday, January 28, 2012

 जूते की अभिलाषा


चाह नहीं है किसी सुंदरी के 
पैरो मैं जा इठलाऊ 

चाह नहीं है किसी बड़े शोरूम में 
सजाया जाऊ  

चाह नहीं है मंदिरों के बाहर में 
छोड़ा जाऊ

मुझे उठा लेना ओ राही
देना तुम उस सर पर फेक 
भ्रस्टाचारी और घूसखोर कोई 
इठलाता हो जहा बना नेक

कृते अंकेश

Thursday, January 26, 2012

तस्वीर कभी  धुंधली होगी 
तकदीर कभी  उलझी होगी 
तुम कोशिश करके तो देखो 
यहाँ जीत नहीं मुश्किल होगी 

जो कहते है यह कठिन बहुत
शायद है वो  अनजान अभी
पर्वत भी चीर गया मानव
न खुद  की उनको पहचान अभी 

उलझो न तुम बस सपनो में
इनको अब सच कर जाना है
जो ख्वाब सजाया था तुमने
तुमको ही रच कर जाना है

दिन ढले रात या भोर उठे
पल को तो आना जाना है
सीमित है समय तुम्हारा यहाँ
जो कुछ चाहा कर जाना है


कृते अंकेश

Monday, January 23, 2012

उन आँखों ने क्या  देखा
मैं खुद को ही भूल गया
न  जाने  किन गलियों से गुज़रा
अपना ही घर भूल गया 

अब तो दीवारे भी बस तस्वीर वही एक लगती है
है अनजान रही  तो क्या
कुछ  अपनी सी लगती है 
लगता जैसे इन गलियों का सब कुछ खोया 
बस एक वही चेहरा दिख रहा 
न जाने  किन गलियों से गुज़रा
अपना ही घर भूल गया

(क्रमश:)
कृते अंकेश

Thursday, January 19, 2012

पंखो में भर ले चल कही मुझको ए सांझ तू 
सपनो ने है थकाया 
कैसे उनको मांग लू
रंगों से क्या शिकायत क्या उनसे हो गिला 
है उनकी तो यह फितरत जो कुछ भी है किया 
आँखों ने कुछ  सुना और कुछ दिल ने था कहा
एक छोटा सा था सपना वो सपना ही रहा
पंखो में भर ले चल कही मुझको ए सांझ तू 
सपनो ने है थकाया 
कैसे उनको मांग लू 
क्यों करते हो शिकायत किससे  है यह गिला 
रंगों को क्या पता, था दिल में तेरे क्या रहा
खो जाओ आज मुझमे रंगों का नूर है 
शायद हो यह तुम्हारा पर सपना कोई जरूर है 
पंखो में भर ले चलू कही तुमको  मै आज फिर 
जो कुछ था तुमने  चाहा
वो सब मैं दे सकू 

कृते अंकेश


Friday, January 13, 2012

मानो तो सब कुछ है
 न मानो तो कुछ भी नहीं
क्या दूर क्या पास
संशय, भ्रम या  विश्वास
अरे जाओ इतना वक़्त यहाँ किसके पास
बस सोच में न खो जाओ
छोटी सी जिंदगी है
हसो और हँसाओ
मन करता है तो खेलो
दोड़ो और घूमो

गप्पे लड़ाओ
दोस्तों के साथ खो जाओ
जो भी जी में आये वो करो
किसी से भी नहीं डरो

ये नीला है  आकाश
बस शुन्य ही है इसके पास
कल्पना मात्र  है देवीय विश्वास
फिर कैसा  भय और क्या अपवाद

( कृते अंकेश )

 

Thursday, January 12, 2012

कौन है वो चित्रकार
रचता है जो स्वप्निल संसार
छोड़ता न कोई प्रयत्न
सजाता माधुर्य स्वप्न

क्या किंचित भर उसको आभास
खेल रहा है किसके साथ
है अबोध मन या जीवन
पल भर में कर सकता गर्जन

या वह शिल्पी है प्रखर
जिसने देखे जीवन के हर स्तर
जानता है सुख दुःख हर एक बात
काल को भी देता मूर्त आकार

पर मानव मन की कल्पना विशाल
क्या भान सका उसको अनजान
शून्य पटल पर नभ का चुम्बन
थे सरल रहे कब इसके स्वप्न

(क्रमश:)
(कृते अंकेश)
बच्चे
तुम रोते क्यों हो
तुम हसते हो तो ज्यादा अच्छे लगते हो
लेकिन शायद तुम्हे पता है
कि लोग  सिर्फ तुम्हारी और देखेंगे, मुस्कुराएंगे और फिर चले जायेंगे
यदि तुम बस  हसते रहोगे
कितने चालाक हो न तुम 
लेकिन इसमें दोष तुम्हारा कहा  है
यहाँ भावनाए तो तभी समझी जाती है न
जब वह  टूट कर शरीर से बिखरने लगती है
चेहरा जब  उन्हें और नहीं छिपा पाता
और अंतरपीड़ा आँखों में  उभर आती  है
तभी तो जग को तुम्हारी याद आती है
मैं नहीं रोकूंगा तुम्हे रोने से
क्योंकि  आज नहीं है मेरे पास साधन तुम्हे हँसाने का
लेकिन मेरे बच्चे बहुत जल्दी तुम्हे सीखना होगा
चुप होना
क्योंकि व्यस्त संसार को तुम्हारा क्रंदन शीघ्र ही ख़ामोशी सा लगने लगेगा
और तब तुम्हारे रोने का भी मकसद नहीं रह जायेगा

कृते अंकेश

Tuesday, January 10, 2012

मैं प्यार करता हूँ
चेहरों पर खिलती मुस्कुराहटो से
जिन्दगी से
सुबह से शाम से
उस फूल से
जो मुरझाने से पहले बिखेर जाता है मुस्कराहट न जाने कितने दिलो में
आसमान में सजे हुए तारो से
लहलहाते हुए खेतो से
धूप में खिलखिलाकर दोड़ते हुए बच्चो से
मैं जानता हूँ
की दुनिया खूबसूरत है 
इसलिए उठो और साथ दो उनका
जो लड़ रहे है जिन्दगी के लिए
प्यार के लिए
खुशियों के लिए
एक सुन्दर कल के लिए


कृते अंकेश


 

Sunday, January 08, 2012

आँखों का अंतिम निर्णय था
आंसू अब तुम बह जाओ
रात अँधेरी सुप्त भवन है
ऐसे में सब कह जाओ 

 कब तक रोके  पलके तुमको
उनको भी अभ्यास कहा
 देखो जीवन ऐसा ही होता है
तुमको न था आभास  यहाँ

अर्धरात्रि  के अंधियारे में
चहरे की आभा खोती है
उन पलकों से जब दो छोटी
अश्रुधारा रोती है

 कृते अंकेश

Saturday, January 07, 2012

थोडा धीरज रखो
अपने भी दिन फिरेंगे
यह माट की हडिया हटेगी
टाट हट परदे सजेंगे
देखना चूल्हे में अपने
आग अब हरदम जलेगी
बर्तनों में पानी रहेगा
यह धारा आँखों से  न बहेगी
 
गाडियों में बैठकर
हम भी  कही फिर दूर होंगे

रात भी अपनी कटेगी
शांत सब  स्वप्नों  में  रहेंगे      
इतना सभी कुछ मिल सकेगा
सच बताता हूँ तुम्हे
जो यदि में पढ़ सका  उन सभी की तरह 

कृते अंकेश