Wednesday, August 31, 2011

बढ चले दल, फिर नयी मंजिलो की आस में 
घटती दिवा, बुझने लगी चन्द्र के प्रकाश में
संध्या तले, दीपक जले बरसी कृत्रिम रौशनी 
यह प्रकाशित आगमन ही रात्रि का आह्वान है

कृते अंकेश

Monday, August 29, 2011

चल पड़ी यह मेघ सेना ले गगन में आज पानी 

जब घटा ने ओढ ली चादर कोई श्यामल पुरानी
चल पड़ी यह मेघ सेना ले गगन में आज पानी 
था कभी  अपना सरोवर, तीर भी अपना ही था
दर्द से तपकर यह जल बाष्प बन उड़ता गया 
अब यहाँ सूखे अधर है
और है कुछ लुटी कहानी 
चल पड़ी यह मेघ सेना ले गगन में आज पानी

दर्द से यु है नहीं कोई नया अपना यह नाता
ग्रीष्म में है स्वेद त्यागा उस घटा का बल बढाया
लेकिन तरसती आँख को अब नहीं आता रास
बहता रहे मेरा लहू  न मिटे उनकी प्यास
तरसे नयन है ढूंढते 
किसने है छीनी यह कहानी
चल पड़ी यह मेघ सेना ले गगन में आज पानी

गर्जन है करती जो घटाए कह दो उनका बल हमसे ही है
है जो बैठी वह गगन में उनके अगन में हम ही है
फिर भी यदि न मानती वह सत्य की इतनी कहानी
तो चलो भरकर लहू ही आँख में जो न हो  पानी
जीतनी है अब हमें
अपनी खोयी किस्मत पुरानी
चल पड़ी यह मेघ सेना ले गगन में आज पानी

कृते अंकेश

Sunday, August 28, 2011

छूटकर जो रास्ते से मैं किनारे पर खड़ा था
हाथ मेरा थाम वो ले फिर मुझे बस चल दिया था
जीत या  हार तो लगने लगे बस अब बहाने
सेकड़ो की भीड़ में  जो है मिले कदम जाने पहचाने

कृते अंकेश 


Tuesday, August 23, 2011

भीड़ है बदती हुई 
गूजते कुछ स्वर भी है
उन्माद में डूबे हुए पर कुछ इनसे बेखबर भी है
धर्म भाषा जाति बोली कद या काठी क्या पता
इस समूह की भीड़ में हर एक इंसान दिख रहा
है व्यवस्थित से कदम, आँखों में पर आक्रोश है
खौलता है खू नसों में, उनके  स्वरों  में जोश है
रास्ते कब बन गए है मार्ग एक विश्वास का 
है चली जिस  पर यह सेना जीत का उन्माद सा 
आज हम जायेंगे बदल अब हर उस एक सच को
  छीनती है जो व्यवस्था हमसे हमारे हक को

 कृते अंकेश
दो पग तो साथ चले थे हम,
अब न  जाने कब मिल  पाएंगे ,
किस्से पल भर के है तो क्या
 आँखों से न मिट  पाएंगे

 तेरी मंजिल का पता नहीं 
 मेरा रास्ता भी बना नहीं
 जो आज अधूरे  कही रहे 
 बन आँखों में सपने छाएंगे

दो पग तो साथ चले थे हम,
अब न  जाने कब मिल  पाएंगे 

  घिरती  जाएगी शाम कही 
 ढलती  आएगी रात वही 
 फिर आँखों में बन सपना जो
 यह नयन वही  मिल जायेंगे

दो पग तो साथ चले थे हम,
 अब न  जाने कब मिल  पाएंगे 

कृते  अंकेश

Sunday, August 21, 2011

मेघ गया न  तू उस घट
फिर पत्र भला क्यों भींगा है 
सच बतला मुझको बात है क्या
नैनों ने बरसना कब सीखा है

 धुंधले से टेढ़े  यह अक्षर
आँखों की हकीकत कहते है
 तूने तो चेहरा देखा है 
क्या अधर भी खामोश ही  रहते है

वह  चंचल से दो पग जो तब 
मेरे रस्ते आ जाते थे
क्या राहों ने  उनको देखा
अब भी  है वहा आते जाते

एहसास  नहीं होता मुझको 
मैं इतना   दूर चला आया
खामोश  रही साँसे  अब तक
कागज़ की नमी ने बतलाया

कृते अंकेश

Thursday, August 18, 2011

  बादल को घिरते देखा है
   तूफा  की आहट से मैंने  बस्ती को  जुड़ते देखा है
  फिर भी जो  सोया क्या बोले
  शायद सोचेगा कल, सपनो ने भी उडान भरी
  लगता आज उसे  जो धोखा  है
  बादल को घिरते देखा है
कृते अंकेश



Tuesday, August 16, 2011

छोड़ सखी क्या उनसे बोले
छोड़ सखी क्या उनसे बोले
भूले वो क्यों  राज़ यह खोले  
निशा नहीं यह क्षण प्रभात का
बन बावरे फिर क्यों डोले
छोड़ सखी क्या उनसे बोले


जीवन की इन राहों में
जाने कितने मोड़ बने है
किस पथ बिछुड़े थे उनसे तब
किस पथ पर अब नैन मिले है
 मगर कहे क्या समय की सीमा
  नयनो में है अचरच घोले
छोड़ सखी क्या उनसे बोले
 भूले वो क्यों  राज़ यह खोले  

यह बूदे बारिश की देखो
कभी भिंगो जाती थी तन को 
पूरे जोरो से है बरसी
नहीं भिंगो पाई पर मन को
 कैसे इन बातो को अब
 उस भूले भटके उर में खोले
छोड़ सखी क्या उनसे बोले
भूले वो क्यों  राज़ यह खोले  

देखो यह ढलता सूरज भी
दिनकर को आभास दिलाता
निशा निकट है, इंदु प्रेम से
श्रृष्टि का श्रृंगार कराता
 हाय मगर कहा भाग्य हमारा
 किस चंचलता को अब तोले
छोड़ सखी क्या उनसे बोले
भूले वो क्यों राज़ यह खोले

कृते अंकेश

Saturday, August 13, 2011

इंतज़ार

इंतज़ार में
बीत गए दिन
अब तो ऋतु भी बदली है
कुछ कहते है सावन आया
छायी काली बदली है



कहा छिपी है तेरी आभा
 जीवन का श्रृंगार कहा
मधु था भूल गया होठो को
वह तेरा विस्तार कहा
 तुझसे  खोयी मेरी सुबह
 और यह शाम दुपहरी है
वो कहते बीत गया है अरसा
लगती बीते पल की प्रहरी है

इंतज़ार में
बीत गए दिन
छायी काली बदली है


कृते अंकेश

Wednesday, August 03, 2011

कसूर किसका है

हमने तो बस रंगों से दोस्ती की 
फिजा में गर छायी लाली तो कसूर किसका है 
शिकायत लाख करे ज़माना 
मगर तमन्ना ए हसरत अभी भी उतनी  ही मासूम  है 
लेकिन फिर हाथो से यदि वही तस्वीर बन जाये तो कसूर किसका है 

यु तो मौसम भी गुज़रते है 
सावन से पतझड़ तक 
लेकिन बिन मौसम बदली गर भिंगा जाये तो कसूर किसका है
मेरे आँगन  में बगीचा है कुछ सूखे पेड़ लिए 
पर अचानक से तितली आ गुनगुना जाये तो कसूर किसका है  


कृते अंकेश