Monday, November 11, 2013

मैंने प्रेम किया था 
ठीक वैसे ही 
जैसे रौशनी निकलती है 
घने जंगलो के बीच 
लड़ते कापते 
लेकिन अपना रास्ता बनाते हुए 
या जैसे चलती है नाव 
किसी चित्र में 
क्षितिज से मिलने के लिए 
लड़ती हुई स्याही से 
या जैसे उड़ते है पक्षी
धरती से ऊपर
बहुत ऊपर
पीछा करते हुए

मैंने प्रेम किया था
जिसे में कभी पा नहीं सका
लेकिन इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता
कि अब जबकि तुम मुझसे दूर हो
रौशनी आज भी जंगलो के बीच से
अपना रास्ता बना ही लेती है
मानो गाती हो तुम्हारा नाम
इन पत्तो के ऊपर से
और लड़ रहा है आज भी वह जहाज
स्याही के साथ
अब जबकि नहीं पता उसे कि जाना कहा है
लेकिन चलता है ऐसे
मानो तुम्हारी आँखे टकटकी लगाये देख रही है इसे
आज भी पक्षी उड़ते है
गाते हुए तुम्हारा ही नाम

कृते अंकेश

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