Wednesday, December 04, 2013

एक अधूरी सुबह मिली 
कुछ जागी कुछ सोयी रही 
आँखों में थी सपने लिए 
पलकों को न बन्द किये 
उड़ती थी फिर रात उधर 
छूटा था जो साथ इधर 
एक किरण फिर नयी दिखी 
सुबह की तस्वीर छिपी 
दिन का फिर आघात हुआ 
निद्रा हाय विश्वासघात हुआ 

कृते अंकेश

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