Sunday, December 01, 2013


ओ री  सखी कहा मुस्कान छोड़ी
तूने कहा से यह ख़ामोशी ओढ़ी

उड़ते कैशो में कैसी यह गुमसुम
सुन्दर से चेहरे पर छायी क्या उलझन

क्यों चंचलता में उदासी है घोली
तूने कहा से यह ख़ामोशी ओढ़ी

नैना क्यों तेरे तुझको रुलाये
जग सारा तुझको हँसा क्यों न पाये

ओ री  सखी कहा मुस्कान छोड़ी
तूने कहा से यह ख़ामोशी ओढ़ी

भींगी है पलके, ढूंढो किनारा
हो तुम न अकेले, हूँ में तेरा सहारा

चिर परिचित मुस्कराहट, हसी, ठिठोली
खुशियो की सरगम तेरी वह बोली

ओ री  सखी कहा मुस्कान छोड़ी
तूने कहा से यह ख़ामोशी ओढ़ी

कृते अंकेश

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