Monday, July 01, 2013

आंसू

आंसूओ  में पिघलती है बर्फ कही  की 
झरती है यादें गरजती बरसती 
उभरते है  नैना कालिमा  को ढाके 
इन पहाड़ो में कहा कोई झाके 

कृते अंकेश 

SCHOOL

मेरे स्कूल में 
दो रस्ते थे आने के 
सेकड़ो रस्ते थे जाने के 
दीवारे खीची जाती थी 
लेकिन अनेको बार तोड़ दी  जाती थी 
क्लास तो हमने कहा कहा नहीं लगायी 
स्कूल को आने वाली हर सड़क 
हमने ही सजाई 
पड़ने से ज्यादा वहा  न पड़ने के बहाने थे 
छात्र खेलकूद  के शौक़ीन और शिक्षक अपनी ही  धुन में दीवाने थे 
स्कूल सरकारी था 
ताज्जुब नहीं की यह हाल था 
पर फिर भी भइया  स्कूल अपना मिसाल था 
यहाँ के गुरुजनों की शिक्षण शैली 
सदा रंग लायी 
शायद ही हो कोई ट्राफी या मैडल 
जो अपने स्कूल न आई 

कृते अंकेश