Wednesday, May 19, 2010

मेरे कुछ ख़ास साथियो को समर्पित 

बीत गया धुंधला सा सपना
रात गुजर सी चली गयी 
आने वाले कल की यादे 
फिर माथें में उभर रही 

स्वप्निल स्वरित स्वयंभू काया 
स्वप्नों की यह चंचल छाया
स्वप्न सरोवर सुधा प्रवाहित 
आज सृजन  को उभर रही 

छोड़ चला  मैं आज स्वयं को 
स्वप्न नया एक पाने को 
कदम उठाये आज है मैंने 
दुर्गम पथ अपनाने को