Monday, November 11, 2013

नहीं जाना मुझसे दूर कुछ समय के लिए भी 
कैसे कहूँ लगता है वक़्त लम्बा बहुत इंतज़ार का 
मानो खिड़की खुलने के लिए करता हो इंतज़ार धुआ 
बढ़ता ही जा रहा है अंदर ही अंदर
और घोटने लगा है मेरा ही दम 
शिकायते तुम्हे होगी मुझसे 
लेकिन शिकायते कभी नहीं होती कम 
नहीं छोड़ना कभी भी मुझे 
भटकता ही रहूंगा तुम्हारे बिना 
इधर से उधर 
पूछता
क्या तुम बापिस आओगी
क्या मैं खुद को फिर से पाउँगा

कृते अंकेश

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