Sunday, December 15, 2013


बस और नहीं
कहने दो उनको बातें कई
कब न मैंने सुनी या समझी
थी बात उन्होंहने जो कही
लेकिन बस अब और नहीं

कह दो उड़कर जाना था
पिंजरे से पंक्षी को और कही
थी नजरे जिसको  ढूंढ रही
वह नज़र सलाखो से दूर कही
लेकिन बस अब और नहीं

खाली पिंजरे को देखोगे
तो शायद तुम यह समझोगे
यह पिंजर छूट ही जाता है
यह रिश्ता टूट ही जाता है

लेकिन यह सच है जीवन का
शायद तुम भी यह समझोगे
लेकिन बस अब और नहीं

कृते अंकेश

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