Thursday, October 31, 2013

छुप जाओ अँधेरी रात में 
कोई आ रहा है हमारी और 
देखते नहीं चंद्रमा भी जा छिपा है 
क्षितिज के उस ओर 
उन कदमो की आवाज़े 
ढूंढती है हमें 
हमारी साँसों की गहराइयाँ 
न जाने कहा जाकर रुके 
क्या देखा ऐसा तुमने 
जो थाम लिया यह हाथ 
मंज़िल दूर है मेरी
क्या निभा सकोगे साथ

कृते अंकेश
कह रहे है लोग आज, इंकलाब चाहिए 
हमें व्यवस्था में अब बदलाव चाहिए 
बहुत सुनी, बहुत सही, घुमा घुमा के जो कही 
कहने वाले अब नहीं, करने वाले चाहिए 
हरा, लाल, नीला, पीला रंग कोई भी चलेगा 
बट चुके है बहुत, अब न जात पात कोई कहेगा 
तोड़ दे गरीबी जो, सामने वही रहे 
है समाधान जहा, बात फिर वही कहे 
इंतज़ार नहीं अब इंक़लाब चाहिए 
हमें व्यवस्था में अब बदलाव चाहिए 

कृते अंकेश

Tuesday, October 29, 2013

पहले भाषा आई फिर भगवान् 
इसीलिए है इतने नाम 
अल्लाह बोलो या बोलो राम 
इनका रचियता है इंसान 
अगर कही वह सर्वशक्तिमान 
यह सारे ही होगे उसके नाम 

कृते अंकेश
भूख से अभी नहीं 
सामना मेरा हुआ 
कैसे बोलो लिख दूं में 
उन करोडो की व्यथा 

लिख सकूंगा जो कभी 
वह तो मात्र अंश है 
यह सभ्यता अभी 
मनुष्यता पर दंश है 

कृते अंकेश

क्या कही देखा है तुमने
उन घुंघराले काले  बालो को
इस जीवन में आस जगाकर
सूने  मन में प्यास जगाकर
आँखों की परिधि में जाकर
जल के स्त्रोत बहाने  वालो को
क्या कही देखा है तुमने
उन घुंघराले काले  बालो को
या निष्ठुर यह खेल है उनके
आँखे तकती जिनके सपने
सपनो को ठुकरा कर पल में
छोड़ साथ  जाने वालो को
क्या कही देखा है तुमने
उन घुंघराले काले  बालो को

कृते अंकेश

Saturday, October 26, 2013

निकले थे घर से खाने को राजस्थानी खाना 
बोला दोस्त निकल गेट से जा दाये मुड जाना 
वही सामने होटल उनका मस्त वहा का खाना 
तबियत खुश हो जाएगी तब ही बापिस आना 
चले मस्त हो हम भी फिर ले सपने ऊचे ऊचे
बस पल भर में गये नापते वो गलिया वो कूंचे 
लेकिन यह क्या यहाँ तो दाए बाए नहीं कुछ दिखता 
थालपकटटू रहा सामने बाए कीचड का गड्डा 
लगे सोचने कहा भला अब जाकर किससे पूछे
अगर समझ ली उसने हिंदी फिर कैसे तमिल को बूझे
सोचा अब जब दिया ओखली में सर तो क्या डरना
आ गए जब इतना आगे तो फिर क्या पीछे मुड़ना
पर शायद किस्मत फूटी थी दिखा सामने होटल
झटपट हम जा पहुचे उसमे दिया फटाफट आर्डर
थाली शायद बरसो से इंतज़ार थी करती
उस पर आध इंच धूल की परत रही थी सजती
कच्ची भिन्डी लाकर बोला यह राजस्थानी खाना
सांभर डाल कटोरी में कहता जैसे खा लो जो है खाना
और करेला संग में उसके मानो इतना कम था
लगा हमें क्या भूल हो गयी क्यों खाने का मन था

कृते अंकेश

Friday, October 25, 2013


तुम गुलाबी रंग से खुद को सजाओ आज
मैं शिकायत क्यों  करू, मेरा क्या एतराज
में खड़ा जिस मोड़ पर राहे  यहाँ अनेक
थे मिले मुझको जहा तुम राह थी वो एक
कह रही यह रात फिर उलझन भरी मुझसे
साथ जब तुम हो नहीं फिर दूर हम किससे
तोड़ कर सारे बहाने मन चला फिर से
हारना या जीतना यह खेल न अपने

कृते अंकेश

Thursday, October 24, 2013


उडती रही घनघोर उदासी
छाया रहा कुहासा
कोई प्रेम में खोया सुधबुध
कोई रहा निर्वासा
कोई तकता मंजुल यादें
कोई रहा बस प्यासा
कोई चला ढूँढने पथ को
कोई अलसाया आधा
देख प्रखर जीवन की चर्या
यहाँ मार्ग उन्मुख है
सुख दुःख है बस  पल के  सपने
न राह कर्म निष्फल है

कृते अंकेश

Tuesday, October 22, 2013

वह उन बालो को सुलझाती या उलझाती यह नहीं पता 
लेकिन में उनमे जा उलझा, बस इतना ही है मुझे पता 
वह मुस्काती या मुस्कान खिला करती चेहरे पर नहीं पता 
लेकिन में उन मुस्कानों में जा खोया बस इतना ही मुझे पता
बन उलझन एक पहेली वह हल करती या न नहीं पता
लेकिन में अब न और पहेली कोई सोचा करता, है मुझे पता 
घुंघराले बालो की उलझन फिर ढून्ढ रही है किस हल को 
है आज सामने जीवन जो फिर ढून्ढ रही है किस कल को 

कृते अंकेश

बारिशे रूकती नहीं
बहती रही दीवार से
गिरती रही उस फर्श पर
पग थे जहा उस यार के
बहती  रही जो यह हवा
किसने कहा कब क्या कहा
कहते रहे जो लोग फिर भी
कौन सुनकर रुक गया
उडती रही फिर वो लटें
घुंघराली जो आकार  में
इंदु सम चेहरे को ढकती
मानो कालिमा आकाश में
और गरजी बिजलियाँ
लगता   घना  प्रतिरोध है
बढ रहा एकाकी मन
क्या उसे  यह बोध है

कृते अंकेश

Monday, October 21, 2013

सवांरती रही चेहरा 
उलझती लटें, घुंघराले कैश 
तीक्ष्ण नयन, सहज मुस्कान समेटे अधर
अधरों के कम्पन से उभरते स्वर 
स्वरों की सहजता, सौम्यता, शालीनता से पराजित अंत: स्तर 
उलझता रहा मन
दिन प्रतिदिन
नयन खोजते रहे नयन
उलझनों में क़ैद जीवन
सवांरती रही चेहरा

कृते अंकेश

मेरी और ताकती
घुंघराले बालो वाली वह लड़की तुम थी
में खोया था उस समय
अपने लेखन में
लिख रहा था अपने अतीत को
अनभिज्ञ उस वर्तमान से
जिसमे तुम थी
तुमने शायद कभी देखी नहीं मेरी रचनाये
या शायद किसी ने कभी देखी नहीं मेरी रचनाये
रह गयी  अप्रकाशित अपने अतीत में
स्वार्थवश छिपा दिया मैंने उन्हें किसी गीत में
नहीं बट सके जिससे कभी
संभव  है कोई उन्हें फिर से लिखे
और बांटे दुनिया के साथ
साया  भी न रहे जब मेरे पास

कृते अंकेश


Saturday, October 19, 2013


शनिवार की शाम
बंद थे दरवाजे हमारे लिए
जो जाते है बाहर
इन चारदीवारियो से
भोजन की भीनी सुगंध
घिरती रही मष्तिष्क में
करती रही असंभव प्रयास
इच्छाओ के परिवर्तन में
दुर्लभ्य तंदुल प्रकार
उभरते चित्र यायावर
प्रखर लेकिन यह विश्वास
रहेंगे आज यही अपने घर

कृते अंकेश

I imagine a world without boundaries
having no religion around
people helps all other people
nowhere misery can be found
you may call me a dreamer
but I know people who dream the same
may be not today or tomorrow
but  someday the day we may name

lets not fall for the heaven
or get worried from the hell
believe me if both exist are on earth
and people lived happily both of the berth
I imagine these boundaries to vanish
and a beautiful world to be around
may be not today or tomorrow
but someday such world can be found

By Ankesh Jain

Thursday, October 10, 2013


देख तराशे
तकता मन क्यों
इस मन को क्या पाना खोना
ढूँढ रहा न जाने फिर क्या
इस मन का न कोई ठिकाना
और छोर की बात है कोरी
मन ही जाने मन का गाना
क्या है खोना क्या है पाना
मन का जाने कौन ठिकाना

उड़ता रहा परिंदा ऐसा
मानो जंजीरों से बेसुध
टूटी तस्वीरो से निकला
जैसे कोई कैद कबूतर
इसकी ख्वाइश की सीमाएं
इनका जाने कौन ठिकाना
क्या है खोना क्या है पाना
मन का जाने कौन ठिकाना

कृते अंकेश

Tuesday, October 08, 2013


कुछ खोया मुझमे
इंतज़ार में खोया खुद में
रही बरसती राते
जग भींगा, मन भींगा
नहीं भींगा में
कुछ खोया मुझमे
इंतज़ार में खोया खुद में

दूंढ़ रही अंखिया
क्या ढूंढें मन अब इसको
जो खोजे निकले मन खोये
फिर कौन तकेगा मन को
आ जा मेघ मल्हार
भिंगो जा
अब मेरे इस तन को
कुछ खोया मुझमे
इंतज़ार में खोया खुद में

तूने क्या जाना
क्या मेरा तेरे पास रहा फिर
में भी कैसा रहा बावरा
खोकर तकता सब कुछ
इंतज़ार में रही बरसती
आँखे खो मुस्काने
मैं खोया किस पल में
अब यह  कौन नयन फिर जाने
कुछ खोया मुझमे
इंतज़ार में खोया खुद में

कृते अंकेश

Friday, October 04, 2013


असफलता तो पतझड़ है
फिर बसंत को आना है
रहा अधूरा जो भी सपना
वह पूरा हो जाना है

पैरो के यह छाले देखो
बाधा नहीं बनेगे अब
किया प्रयत्न अधूरा चाहे
हिम्मत मुझको देंगे सब

मंजिल मेरी दूर सही
लेकिन जीत सुनिश्चित है
मंत्र यहाँ बस चलते रहना
बस इतनी ही जरूरत है

कृते अंकेश
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