Monday, November 11, 2013

यह इमारत खड़ी हिन्द की 
उनके गर्म लहू पर 
सौप गए जो जीवन निज का 
इस पावन वेदी पर 
या जिसने इसको है सीचा 
अपने श्रम से बल से 
चमक रही है इसकी आभा 
उनकी मेहनत के फल से

सौभाग्य हिन्द की इस छाया में 
हमने जीवन पाया
मिला बहुत कुछ
और बहुत कुछ करने का मौका आया
पहले अभी स्वयं से
हमको और है आगे बढ़ना
जीत चुके है कुछ सीमा तक
पूर्ण विजित है बनना

अभी हिन्द में पलते है दो
भिन्न भिन्न से चेहरे
एक बढ़ रहा तीव्र विकास से
दूजा लिए घाव है गहरे
प्रश्न बड़ा है अभी समय का
नहीं हमें है रुकना
सोचो लेकिन कैसे सबको
लेकर साथ है चलना

नहीं हमारे पंख है छोटे
और न सपना छोटा
छोटे छोटे इन पैरो को
होगा आगे बढ़ना
मुस्काने अपनी ही होंगी
अपना होगा जीवन
लहरायेगी हिन्द पताका
हर्षित होगा हर एक मन

कृते अंकेश

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