Saturday, November 23, 2013


घेरा उन्होंने मुझको अकेला
वो थे कई और मैं था एक
कहते रहे वो इसके इरादे
लगते हमें अब नहीं है नेक

मरना ही होगा इसको यहाँ अब
जिन्दा है रहना जो हमको सदेव
देखो उड़ा दो वो सारी चिड़िया
पंखो में जिनके सपने अनेक

आये वो फिर यु, छाये वो फिर यु
बादल घने हो नभ में अनेक
बरसे वो जम के, गरजे वो जम के
गए भिंगो मुझको वो सारे देव

उड़ने लगी फिर मेरी यह चिड़िया
जीते वो फिर से, हारा यह देश
बहता रहा जो खू था जमी पर
या थे रहे मिटटी के आंसू अनेक

कृते अंकेश

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