Saturday, March 08, 2014

यह आंसू उम्मीद का द्योतक
सपनो की यह शेष है स्याही
जिनकी पलके गीली अब तक
उनकी उम्मीदो ने हार न पायी

कृते अंकेश
मुझे कोई गिटार दो
बजाऊंगा में सरगमें
छेड़ कोई तार दो
जुड़ी हो जिससे धड़कने
गीत कोई दे मुझे
सजा रखी है ख़ामोशी
मुस्कुरा भी दे कोई
कहा छिपी हुई हसीं

कृते अंकेश
तुम तक पहुचे तो कह देना
वरना बहने देना इन शब्दो को
न जाने किसकी प्यास बुझाये
कहते जो कहने देना इन शब्दो को

मैंने तो बस कलम चुनी है
स्याही कागज़ पर बिखराई
न जाने किसने हाथो को मोड़ा
कागज़ पर कविता उभरी आयी

यह प्रश्न है जिसका भी लेकिन
हो उत्तर पास तो कह देना
न जाने किसकी प्यास बुझे
जो कुछ है सीधे कह देना

कृते अंकेश
लोग अपने आसूओ को पौछते थे बार बार
मैने सोचा क्यो न मैं खुलकर नहाऊ इनसे यार
रोकना क्यो निकला है जब आज अंदर का गुबार
देखे कहा ले जायेगी फिर, बहती हुयी यह जल की धार
कृते अंकेश
रात अँधेरे को लिए
लहरो पर सवार पास चली आ रही थी
और रेत के किनारे पर बैठी शाम हमें छोड़ कर जा रही थी
लोग इस सबसे अनभिज्ञ अपनी धुन में मदमस्त थे
रौशनी के पहरेदार चुपचाप परदे को बदलने में व्यस्त थे
कितनी आसानी से सब कुछ बदल जाता है
और यह जग फिर भी यु ही मुस्कुराता है

कृते अंकेश
इन कंक्रीट के जंगलो में
आदमी ही आदमी का शिकार करता है
गगनचुम्बी इन इमारतो के अंदर
एक गहरी खाई है
जिसमे सपनो का प्रतिबिम्ब दिखता है
जैसे जैसे आप ऊचाइयो को पाते है
वह प्रतिबिम्ब आपसे उतना ही दूर होता जाता है
हवा, रौशनी , हॅसी , मुस्कराहट सब अपनी है इस जंगल की
उतनी ही कृत्रिम जितनी की यह इमारत

कृते अंकेश
एक ठहरन ही तो है जो मुझको तुमसे दूर लिए जाती
वरना कितने अवसादो के बाद कहा रूक पाया में
मन के पंख उड़ा लेते थे कब के पास तुम्हारे फिर
ख़ामोशी, इनकारो से भी, कब कब था रुक पाया में

कृते अंकेश
एक आसू आखो से छूटा
पंखो में आ उलझा फिर
जो लगा सहेजे गिरा धरातल
जाने दे तू उड़ता चल
यह है बीज अगर बोएगा
आसू ही उपजाएगा
उड़ता चल तू अपनी धुन में
अभी बहुत कुछ पायेगा

कृते अंकेश
इंसान ने जब इंसानो से इंसानो को इंसानो की तरह जीने देने की प्रार्थना की है
उसे जानवरो की तरह ठुकरा दिया गया है
रेत दिया गया उसके गले को ताकि नहीं सुना जा सके कोई भी अक्षर
जला दिया गया उसकी लाशो को शहर से दूर ले जाकर
लेकिन मरने से पहले उन कापते गलो से निकले फिर भी कुछ अक्षर
जिन्हे नहीं समझ सकी सत्ता और मौत के सौदागर
हवा से बहकर फैल गए वह मीलो दूर जाकर
और सुनने लगे उसे सभी शहरो के कापते हुए मन

कृते अंकेश