Saturday, July 31, 2010

स्वप्न 

चल देते है कभी
अचानक से
अनजानी राहों पर 
मंजिलो की तलाश में
समझते है 
कभी समझाते है
या कभी शायद समझ कर भी 
बहक जाते है 
टकराते है टूटते है 
उम्मीदों  से झूझते है 
बहता है मन 
मानो कटी पतंग 
चंचलता बढती है
लहरों की तरह 
कुछ तासीर ही ऐसी है 
या ख्वाबो  का करिश्मा 
जीनी है वो दुनिया
जो में बुनता रहा हूँ 
बीत चला अरसा 
क्यों चुप में खड़ा हूँ 
यह शोर है कैसा 
कैसी है हलचले 
यह ख्वाब है बीता 
या स्वप्न भवर है
टिक टिक घडी की 
निरंतर चल रही 
चंद निगाहे 
बस लक्ष्य तक रही 
उम्मीद है रचेंगे 
इक नया फ़साना 
हो स्वप्न ही भला 
यह  कर है जाना 









Sunday, July 25, 2010

अवसरों को ढूढना 
करना बहाना प्यार का 
बीत जाएगी बहार 
खो न जाना यार 

फिर बजे जो बांसुरी 
ताल छेड़े जो मृदंग 
सोचना है सामने 
फिर वही संसार 

देख मेघराज को 
खिलने लगे जो मन मयूर 
करना नियंत्रित कामना 
है चंचलता पाश 

बारिशो की बूँद को 
गिरने न देना ओष्ठ  पर 
छल जायगी घटा 
वियोगी बयार 

में यहाँ सुदूर में 
शांत छंद रच रहा 
मेरी कवित्व साधना 
है तेरा इंतज़ार

आदित्य ने आभा को पिघला आज है बरसा दिया
ग्रीष्म ने भी शीर्ष पर रहने को है तय  किया 
जीवन लगा पिघलने स्वेद की बूदो तले
वाष्प बन धरा का सारा नीर भी जाता रहा

चल रही पवन भी आज पूरे जोर शोर से
बरसा रही अनल की धार आसमा के छोर से
तपती तपस्या जून की है इन्द्र ने भी सुन रखी
लापता है मेघराज बढती घटा रविन्द्र की

धार जमुना की गई सिकुड़  सर्प रेख सी 
व्याकुल हुई धरा तकती  राह मेघ की
आ चला आषाण लेकिन ताप तेवर तीव्र है
जीवन गया सिमट चढ़ा  प्रदूषण की भेट है 



Thursday, July 22, 2010

में अभी तक सोचता था
हूँ अनाड़ी में यहाँ
आज वह  बतला गया
यह  बस मेरा नजरिया था
चंद पत्थरो  को तराशा 
नूर  का दर्जा मिला 
और कोई  खंडहरों  में ताउम्र भटकता फिरा
.................
जिन्दगी की जंग में बस जीतना ही नहीं 
सेकड़ो नै हार  कर भी नाम है रोशन किया