Sunday, April 04, 2010

सीमा

जब बारिश की बूंदो ने भी हमसे नाता तोड़ लिया
 खेतो की हरियाली ने भी गाँव का दामन  छोड़ दिया 
सुनकर आया तेरे दर पर खुशियो की बारिश होती है
नहीं पता था आंसू बहते और नुमाइश होती है

आज तुम्हारे शहर मैं आकर  मैं खुदको ही भूल गया 
नहीं पता किस राह चला था और किधर मैं निकल गया 

अपनी मिट्टी पर जब हम अनजाने चेहरे पाते थे 
उन चेहरों मैं भी जाने कैसे अपनापन खोज ही लाते थे
आज सेकड़ो चेहरो में , मैं खुद को खोया सा पाता हूँ 
बस   फुटपाथो पर बिखरी भूखी  लाशे गिनता जाता हूँ 

नही जानता क्यो फिर भी वो गीत खुशी के गाते हैं
क्या वो इतने सीमित है या हम सीमा से बाहर आ जाते हैं