Monday, October 31, 2011

आहिस्ता आहिस्ता गयी कितनी रातें
हिसाब ही कहा है, कैसे बताएं
अब तो आरज़ू है जन्नत के इस गलीचे से दूर कही 
दरख्तों की छाव में भी कुछ दिन बिताएं

कृते अंकेश

Saturday, October 29, 2011


क्षोभ
वो कौन आकाश के आँगन में खेलता है
स्वप्नों के साथ 
तरसाता है
सताता है
बूदो की प्यास में
पवन को झुलसाता है
सुना है मेने शोर मेघो के गर्जन का
डरावना सा लगता है
जैसे वह  अपरिचित व्यक्तित्व भयभीत कर रहा हो
लेकिन कभी कभी उसका भी दिल पिघलता है
बरसता है वह
पर इस तरह
कि शांत ही नहीं होता
जलमग्न  कर देता है धरा को अपने आंसूओं से
ये क्षोभ है उस ह्रदय का
जो नहीं समझ सका जीवन को
और संतृप्त  करता है आंसूओ को आंसूओ से

कृते अंकेश 

Wednesday, October 26, 2011

दीप जलो तुम और जलो 
देखो अँधियारा बचा हुआ 
कही कही कुछ पलकों में
दुःख का साया छिपा हुआ 

अपनी खुशियों से बिखेर दो 
जग में रंग ख़ुशी के 
ला  सकते हो तो लोटा दो 
चेहरों की मुस्काने सभी को 

और बढ़ो  तुम और बढ़ो
तुमसे ही आशाएं जीवन की
देख रही है सभी निगाहें 
इस भूतल जलतल नभतल  की 

दीप जलो तुम और जलो
करो प्रकाशित जीवन को
आज जला दो अपनी लो में
हर विपदा विपत्ति  विघ्न को

फिर विजय के गान युगों तक
यु ही गाये जायेंगे
ये दीप सदा हर घर में बस यु ही जलते जायेंगे

कृते अंकेश 




Tuesday, October 25, 2011

दीप तुझे जलना ही होगा 
राही तुझे चलना ही होगा 
जाने कितने चेहरों की मुस्काने अब भी बाकी है
कितनी आँखे भूल चुकी है
क्या होली और दिवाली है
उनके  होठो के रंगों को
अब तुझको ही  भरना होगा
दीप तुझे जलना ही होगा 
राही तुझे चलना ही होगा 



Sunday, October 23, 2011

कुछ पल आज मुझे दे दे जीवन
सर्वस्व तुम्हारा कल होगा
वरना मेरा क्या मैं मिट जाऊँगा 
 दुःख शायद तुमको तब होगा    

कृते अंकेश

Saturday, October 22, 2011

प्रतिबिम्ब 

क्या गाते हो
ओ मुसाफिर
मौन हो तुम
या मौन रह कर ही कुछ कह जाते हो
हो अजनबी
या जाने पहचाने हो
या शायद पहले  कही मिले हो
लगते कुछ परिचित से हो
या अपरिचित हो
माफ़ करना मुझे
भूल जाता हूँ
चेहरे नहीं याद रख पाता हूँ
लेकिन यह तेरे जो स्वर है
शायद पहले भी कही सुने है
या यह मात्र प्रदर्शन है
उन अभिव्यक्तियों का
जो सभी के जीवन का अंग है
या शायद तू और कोई नहीं मात्र मेरा ही प्रतिबिम्ब है

( कृते - अंकेश जैन )









Wednesday, October 19, 2011

मैं बचपन को बुला रही थी, बोल उठी बिटिया मेरी
नंदन वन सी फूल उठी यह छोटी सी कुटिया मेरी

माँ ओ कह कर बुला रही थी, मिटटी खा कर आई थी
कुछ मुह में कुछ लिए हाथ में मुझे खिलाने लायी थी

पुलक रहे थे अंग, द्रगो में कोतूहल सा छलक रहा
मुह पर थी आल्हाद लालिमा, विजय गर्व था छलक रहा

मैंने पुछा यह क्या लायी, बोल उठी वह, "माँ काओ"
हुआ प्रफुल्लित ह्रदय ख़ुशी से, मैंने कहा, तुम्ही खाओ

पाया मैंने बचपन फिर से, बचपन बेटी बन आया
उसकी मंजुल मूर्ती देखकर, मुझमे नवजीवन आया

मैं भी उसके साथ खेलती, खाती हूँ, तुतलाती हूँ
मिल कर उसके साथ स्वयं मैं भी बच्ची बन जाती हूँ

जिसे खोजती थी बरसो से, अब जाकर उसको पाया
भाग गया था मुझे छोड़कर, वह बचपन फिर से आया

(सुभद्रा कुमारी चौहान)

Tuesday, October 18, 2011

मैं ह्रदय की बात रे मन
किससे कहू यह शोर सारा
क्या भला मैं व्यर्थ हारा

इस झुलसते विश्व दिन की
है कही क्या रात भी
है घिरी यह कालिमा जो
लाएगी क्या बरसात भी
न दिखाओ बस स्वप्न मुझको 
मैं यहाँ स्वप्नों से हारा 
किससे कहू यह शोर सारा 

अश्रु आँखों में सजाये 
कैसे विजय का ताल दू 
है गहन छायी निराशा
कैसे कहो मैं  टाल दूं 

चिर विषादो के प्रणय में 
क्षुब्ध है जीवन की धारा 
किससे कहूं यह शोर सारा

कृते अंकेश

Monday, October 17, 2011

मत कहो है पथ असंभव
व्यक्तिगत मत है यदि तो व्यर्थ है इसको बताना
है  समय अपना  गवाना
क्या हुआ जो छाया अँधेरा
आकाश में है  व्याप्त कोहरा
सूर्य भी दिखता न है
क्या करेंगे देखकर
देखा उसे सहस्त्रो ने है
हमको तो आगे है  जाना
मत कहो है पथ असंभव

कृते अंकेश







Saturday, October 15, 2011

 फ़्रांसिसी कविता का हिंदी में अनुवाद   (मैं जैसा हूँ वैसा हूँ)

मैं जैसा हूँ वैसा हूँ
मैं ऐसा ही बना हूँ
जब होती है हँसने की इच्छा
हाँ, मैं ठहाके मार कर हँसता हूँ

प्यार करता हूँ उन्हें जो प्यार करते हैं मुझे
क्या यह मेरी ग़लती है
(अगर यह वैसे ही नहीं होता)
कि हर बार मैं प्यार करता हूँ?

मैं जैसा हूँ वैसा हूँ
मैं ऐसा ही बना हूँ
तुम और क्या चाहते हो?
क्या चाहते हो तुम मुझसे?

मैं चाहने के लिए बना हूँ
मेरी एड़ियाँ बहुत ऊँची हैं
मेरा कद बहुत झुका हुआ
मेरा सीना बहुत ज़्यादा कठोर
और मेरी आँखें बहुत ज़्यादा कमज़ोर
और फिर
इससे तुम्हारा क्या होगा?
मैं जैसा हूँ वैसा हूँ
मैं ऐसा ही बना हूँ

क्या होगा इससे तुम्हारा
जो मुझे हुआ था?

हाँ, मैने किसी से प्यार किया था
हाँ, उसने मुझे प्यार किया था
उन बच्चों की तरह जो आपस में प्यार करते हैं
केवल प्यार करना जानते हैं
प्यार करना
प्यार करना
क्यों करते हो मुझसे प्रश्न
यहाँ मैं तुम्हें खुश करने के लिए हूँ
और यहाँ कुछ बदल नहीं सकता।

मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमंत जोशी 
जो पुल बनायेंगे
अनिवार्यत: पीछे रह जायेंगे
सेनाये हो जाएँगी पार
मारे जायेंगे रावन
विजयी होगे राम
जो निर्माता रहे
इतिहास में बन्दर कहलायेंगे

(अज्ञेय) 

साप
तुम सभ्य तो हुए नहीं

नगर में बसना भी तुम्हे नहीं आया
एक बात पूछु उत्तर दोगे
फिर कैसे सीखा डसना ?
विष कहा से पाया ?

(अज्ञेय)
मैं मरूँगा सुखी
मैंने जीवन की धज्जिया जो उड़ाई है

(अज्ञेय)
है वीणा तुम कितनी हो मधुर 
सम्मोहित कर लेती हो तुम अपने उन मधुर स्वरों से 
पर न भूलो कितने हाथो ने किया समर्पण है खुद को 
तब जा पहचानी है वह लय
वह तारो का कुछ निश्चित क्रम 
जिनके छिड़ने से निकला करती है वह मधुर ध्वनि 
मैं भी मोहित हो जाता हूँ 
अपनी सुध बुध खो जाता हूँ 
जादू ही कुछ ऐसा है 
उन मधुर स्वरों का 
है वीणा तुम कितनी हो मधुर

अंकेश जैन

Tuesday, October 11, 2011

उफ़ पिघलता है यह दिन 
क्या हुआ रवि को यहाँ 
हे मेघ तुम गए हो कहा 

कृते अंकेश 

Sunday, October 09, 2011

स्वप्न 
आभास स्वतंत्रता  का 
है राज्य मेरा 
न कोई सीमा न कोई बंधन 
उड़ता हूँ  आज़ाद 
परिचित या अपरिचित 
सभी है मेरी ही कल्पनाये 
नहीं है विवशता रहने की हमेशा
मैं ही सृजक मैं ही संहारक
तैरता हूँ निश्चल इस सागर में
है जीवंत यह मेरा स्वप्न

कृते अंकेश

Saturday, October 01, 2011

समाज 
मनुष्य का विकास 
कुछ अधूरे प्रश्न 
एक प्रतिविम्ब 
जीवित है कल्पना 
एक नए कल की 
बेहतर कल की  
प्रत्युत्तर है अधूरा 
समाज के उस वर्ग के बिना नहीं है पूरा 
जिसे नहीं है पहुच 
आधारभूत आवश्यकताओ की 
पहचान नहीं है संघर्षवाद के सिद्धांतो की
वो तो भटकता है 
एक रोटी की आस में 
भूखे पेट की प्यास में 
एक भूख के होते हुए भला दूसरी भूख कैसे लगेगी 
खाली पेट में विचारो की माला कैसे गुथेगी
पहले खोजना होगा समाधान इस समस्या का 
तभी संभव है हल किसी और प्रश्न का 

कृते अंकेश