Saturday, March 19, 2011

मेरी  होली   

कोरे कागज से बचपन में
माँ ने प्यार का रंग चढ़ाया 
पापा ने सिखलाया जीना
ज्ञान रंग उनसे ही पाया
भाई तेरा रंग अनोखा
तुझ बिन बचपन सूना होता 
खेल खिलोने प्यारी दुनिया
यादगार हर पल न होता 
मिली ज्ञान की दूजी शिक्षा
विद्या का आँगन था प्यारा
नन्हे मुन्हे चंचल मन को
बेशकीमती रंगों में ढाला
नन्हे मुन्हे मेरे साथी 
कितने रंग थे मैंने पाए
भीग  रहा था रंग बिरंगा
यह पल कभी भी ढल न पाए
आज रंगों की पावन बेला
रंगों में रंग जाऊँगा
आने वाले जीवन को भी
इन रंगों से सजाऊँगा
 
 
कृते अंकेश    
   

Wednesday, March 16, 2011

आकांक्षा 

जा पंथी अब छोड़ मुझे 
मैं बीते कल की दासी हूँ
एक पहेली अनसुलझी सी
कोई ग़ज़ल पुरानी हूँ

पैमानो के जोर में अटकी
आज भी तोली जाती हूँ
एक अधूरी मृग आकांक्षा
नयनो  के गोते खाती हूँ 

  
जा सपनो के रंगो में उड़कर
तू अपनी मुस्कान सजा ले
गम की छाया छोड़ यहाँ पर   
खुशियो के तू रंग बहा दे

देख वाबरी अंधियारी रातें
में अपनी सेज सजा ही लूंगी
कदमो के जाने की आहट से
अपना रंग मिटा ही दूँगी

सूरज की किरणे फिर से जब
तेरे मस्तक से टकराएंगी
सारे रंग भूल  श्वेत सी
स्मृति उभर कर आएगी

मेरे रंगो का वह धागा
हो सके अगर तो लौटा देना
जीवन की शैय्या  पर बिखरे 
स्वप्नो को मिटा देना

     
 कृते  अंकेश 
   

Tuesday, March 15, 2011

क्षण भर के कम्पन ने फिर से 
एक नयी त्रासदी ढा दी 
कितनी सूक्ष्म असहाय जिन्दगी 
 जल तरंग ने पल में बहा दी 
असंभव घटनाओ का
यह कैसा क्रम है छाया
नाभिकीय विस्फोटो  से
विकिरण  निकल बाहर है आया
ढूढ़ रहे है दूर दूर से
आये  नयन मनुज के तन को
अपने स्वप्नो के मलवे में
छिपे हुए मानव के मन को
स्वयं झूझती सीमाओ से
आज अर्ध्सुप्त सी काया
सकल विश्व हुआ एक है
यह संकट मानव पर आया

  
 
 
 


   

Thursday, March 03, 2011

कुछ तत्वो का संगम है
कुछ नियमो की शक्ति  है
मानव काया इस श्रृष्टि की
एक अनोखी गुत्थी है
आयामो  की सीमा में यह
सदा मध्य में आती है
जितनी छोटी आकाश गंगा से  
अणु  को उतना पीछे पाती है
सदियो के विकसित क्रम का यह
परिणाम अनोखा  लगता है
रहे समय के किसी दौर में
सदा ज्ञान को तकता है
भाव, बिभाव, शक्ति, सौन्दर्यता
जीवन के आयाम यहाँ
ध्येय ज्ञान है, लक्ष्य ज्ञान है
जीवन में विश्राम कहा