Saturday, January 08, 2011

एक पेड़ का पत्ता
टूटा डाली से जा बिखरा
माँ के आँचल में  जा निखरा
ले चली पवन यह  किस ओर
 कैसा है यह शोर


सपनो का वो बादल
प्यारा सा था  वो तरुवर
सूरज की किरणो ने बेधा
मेरे अन्तर्मन का शोर  
ले चली पवन यह किस ओर

उठती है सपनो की लहरें
गिरते है संशय   के परदे
तूफा की धारा में बहकर
तय करने है मीलो के पहरे
ले चली पवन यह किस ओर

अंधियारे की बस्ती
मिटती नहीं मिटाये हस्ती
जीवन के अनमोल क्षणॊ को देकर
पाए है शब्दो के मोल
ले चली पवन यह किस ओर