Wednesday, December 04, 2013


कह  रहे सपने यहाँ उड़ते रहे पंखो से तुम
लेकिन विचारो को भी  तुम्हारे पंख लगने चाहिए
देखो पड़े है किस सदी से इन किताबो में छिपे
लगता नहीं अब क्या तुम्हे इन  किताबो को बदलना चाहिए

फेकना लेकिन इन्हे  जाने बिना बिलकुल  नहीं
पहले इनकी असलियत को समझना चाहिए
देखना कितनी सदी पीछे रहे हम ज्ञान में
है समय यह उचित सारे संसोधन होने चाहिए

कृते अंकेश

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