Saturday, October 26, 2013

निकले थे घर से खाने को राजस्थानी खाना 
बोला दोस्त निकल गेट से जा दाये मुड जाना 
वही सामने होटल उनका मस्त वहा का खाना 
तबियत खुश हो जाएगी तब ही बापिस आना 
चले मस्त हो हम भी फिर ले सपने ऊचे ऊचे
बस पल भर में गये नापते वो गलिया वो कूंचे 
लेकिन यह क्या यहाँ तो दाए बाए नहीं कुछ दिखता 
थालपकटटू रहा सामने बाए कीचड का गड्डा 
लगे सोचने कहा भला अब जाकर किससे पूछे
अगर समझ ली उसने हिंदी फिर कैसे तमिल को बूझे
सोचा अब जब दिया ओखली में सर तो क्या डरना
आ गए जब इतना आगे तो फिर क्या पीछे मुड़ना
पर शायद किस्मत फूटी थी दिखा सामने होटल
झटपट हम जा पहुचे उसमे दिया फटाफट आर्डर
थाली शायद बरसो से इंतज़ार थी करती
उस पर आध इंच धूल की परत रही थी सजती
कच्ची भिन्डी लाकर बोला यह राजस्थानी खाना
सांभर डाल कटोरी में कहता जैसे खा लो जो है खाना
और करेला संग में उसके मानो इतना कम था
लगा हमें क्या भूल हो गयी क्यों खाने का मन था

कृते अंकेश

No comments: