Wednesday, August 29, 2012

कौरवो की सुन व्यथा 
यमराज भी रोने लगे
पांडवो की ध्रस्टता पर 
धैर्य वो खोने लगे
तुम सैंकड़ो और वो पांच थे 
फिर भी सदा लड़ते रहे
धर्म का इस कदर 
अपमान वो करते रहे
क्या हुआ  जो यदि 
राज्य  तुमने ले लिया
राजधर्म था यही 
जो  तुमने किया 
छल कपट तो सदा 
नीति राजधर्म है
एक नारी पांच नर
क्या यह सत्कर्म है 
 मत निराश हो पुत्र 
शेष हूँ मैं अभी 
न्याय धर्म और सत्य की 
आस  शेष है बची 

कृते अंकेश 

Sunday, August 26, 2012

मेरा जीवन रहा अकल्पित 
त्याग तपस्या रही अधूरी 
अधरों की मुस्कान अपरिचित
एक अनजान सी जीवन शेली 

मुझे रंग की चाह नहीं थी 
जीवन की परवाह नहीं थी 
स्वप्न अधूरे रहे छलकते 
विस्मृत नयनो से थे तकते

कृते अंकेश

Friday, August 24, 2012

 लगा मुझे ऐसा मानो तुम आये
और चले गए फिर बिना कुछ बताये 
बैठा था मन मेरा एकाकी 
खोया था जिसमे थी तुम्हारी झाकी 
बेबस था मन 
इसने सपने सजाये 
लगा इसे रंगों में तुम निखर आये 
छाया रही  उडती थी आँगन में दिन भर 
पंखो ने पकड़ी थी सपनो की सरगम 
मैंने न जाने कितने गीत गए 
लगा मुझे ऐसा मानो तुम आये 
और चले गए फिर बिना कुछ बताये 

कृते अंकेश




 लगा मुझे ऐसा मानो तुम आये
और चले गए फिर बिना कुछ बताये 
बैठा था मन मेरा एकाकी 
खोया था जिसमे थी तुम्हारी झाकी 
बेबस था मन 
इसने सपने सजाये 
लगा इसे रंगों में तुम निखर आये 
छाया रही  उडती थी आँगन में दिन भर 
पंखो ने पकड़ी थी सपनो की सरगम 
मैंने न जाने कितने गीत गए 
लगा मुझे ऐसा मानो तुम आये 
और चले गए फिर बिना कुछ बताये 

कृते अंकेश




Monday, August 20, 2012

था दर्द पिघलता आँखों से 
साँसे कर्जे में डूबी थी 
दाने दाने के मोहताज़ हुए 
तब लाशे  उनकी झूली थी 
तुम किसकी बातें करते हो 
है हुआ फायदा किसे यहाँ 
पिघला पिघला कर तन जनता का 
महलो में बस धन जमा किया 

कृते अंकेश 

Sunday, August 19, 2012

भारत जिसे हो कहते 
जो देश है हमारा 
सदियों से जिसने सबको 
बस है दिया सहारा 
कोई नहीं पराया 
यहाँ सब हुए है अपने 
सबने सजाये मिलकर 
जिसके थे जो भी सपने 

जो कर रहे है हिंसा 
इतिहास से बेखबर है 
पिघले अशोक जैसे 
भी दिल कभी इधर है 
शस्त्रों को यु तो हमने 
है नहीं कभी सराहा 
लेकिन मद में मादित 
आक्रामको को  छकाया

ओ मद में मादित मुसाफिर 
क्यों घर को ही तोड़ते हो 
चंद स्वार्थियो के बहकावे में 
इंसानियत छोड़ते हो
यह हिंद है तुम्हारा 
यह हिंद है हमारा 
आओ संभाले इसको 
हिंदोस्ता है प्यारा 

कृते अंकेश 

Thursday, August 09, 2012

चोरो की सेना ने सोचा 
चलो करे हम भी व्यापार
बिजनेस सबका फलता फूलता 
हम ही बैठे क्यों लाचार 

बड़े चोर ने पता लगाया 
क्या स्टेटस बिजनेस का 
शेयर मार्केट ठप पड़ी थी 
पता नहीं इन्वेस्टर का 

इन्फ्लेशन की मार झेलती
जनता पहले ही तंग थी
किसी नए प्रोडक्ट की सक्सेस
उम्मीदे बिलकुल कम थी

लेकिन देखा एक है तबका
रहा अभी भी हरा भरा
राजनीति का है गलियारा
सुख सुविधा संपन्न सजा

मौका पाकर चोरो ने फिर
सेंध लगा दी इसमें भी
राजनीति भी हुई सुसज्जित
पाकर स्किल चोरो की

कृते अंकेश

ओ सलोने सांवले तकते नयन तुझको यहाँ
बावरी है गोपिया है बावरा यह बृज हुआ 
ओ यशोदा लाल तेरी बासुरी बजती कहा 
है कहा वो नन्द का आँगन था खेला तू जहा 
ढूंढती अंखिया तुझे ही 
श्याम मेरे हो कहा 
देख तेरे ही तो स्वागत में सजा  है यह जहा 


"जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये"

अंकेश 

Wednesday, August 08, 2012


प्रेम परिभाषित नहीं है 
प्रेम प्रस्तावित  नहीं 
प्रेम प्रेरित  भी नहीं है 
प्रेम पूरित  भी नहीं 

साध्य है या साधना 
आराध्य या आराधना 
हार  जीत या मधुर 
है कोई उपासना 

क्या  विरह का दंभ है 
या  मधुर संग है 
आसमा से या कटी 
बस कोई पतंग है 

रंग में न रूप में 
छाव में न धूप में 
यह मिला जब भी मिला 
बस प्रेम के ही रूप में 

कृते  अंकेश  

Tuesday, August 07, 2012


आलिंगनो में लुप्त व्यथा   
या मात्र  अश्लीलता   
परोक्ष  प्रतिकर्ष    
या अनुत्तरित निष्कर्ष   
या अपराजित प्रेम कथा 
संवेदना 
छद्म ही सही 
ढूंढती जीवन नया 
प्रयोजित स्वप्न 
वासना, दुर्भावना 
या निर्णय व्याकुल मन का 
प्रश्न संक्षिप्त  सा 


कृते अंकेश 
है रात जो यह  
ढलती ही नहीं 
आँखों से कभी 
छलकी ही नहीं 
हम  दूर सही 
मजबूर कही 
यादो की चुनर 
उडती ही रही 

जो खोये है 
पलकों मैं कही 
साँसों ने जिन्हें 
था नाम दिया 
सुबह भी उनका 
क़र्ज़ हुई 
जाने क्या था 
पैगाम लिया 

रुखसत होकर 
अब अश्को ने
आँखों से नाता 
तोड़ दिया 
कल तक थे जो 
फिर  पास  रहे   
आना जाना भी 
छोड़ दिया 

हमने फिर भी 
चुन चुन  करके 
सपनो की सेज 
सजा डाली 
ओ रात कहा अब 
तू यु चली 
हो बनी 
बावरी मतवाली 

कृते अंकेश