Sunday, April 29, 2012

यमुना तेरे तट पर लिखी कितनी कहानी है
कितने शहर बसते यहाँ कितनी रुवानी है
आँखों में है रहती  चमक सजती  जवानी है
हाय मगर क्यों खो रहा तेरा यह पानी है

थी कृष्ण की कालिंदी तू थी  सूर का बचपन
तेरे ही तट पर थी रुकी मुगलों की हर धड़कन
ग़ालिब ने की थी शायरी तेरे ही सायो  में
थी ली  भगत ने भी  पनाह तेरी ही बाहों में

तेरे किनारों पर  लगे कितने यहाँ  मेले
तेरे तटों पर न  जाने कितने वीर थे खेले
तेरे सहारे ही हुई विकसित यह सभ्यता
हाय मगर क्यों भूली आज यह तेरी महत्ता

संभलो संभालो आज यह अपनी निशानी है
अपनी रगों में दोड़ता इसका ही पानी है
आँखों में है रहती  चमक सजती  जवानी है
हाय मगर क्यों खो रहा तेरा यह पानी है

अंकेश

Wednesday, April 18, 2012

मैं सैयां के साथ चली जाऊंगी तकते रहना
मैं बापस न आऊँगी बस नाम ही जपते रहना 

मैं जो चली जाऊंगी 
फिर न मैं यु आऊँगी 
कह दो जो कहना है मुझसे 
दिल  मैं भी  क्या  रखना 
आँखों  में क्यों  रहे छुपा तुम 
देखा है जो सपना 
सपनो को अपनाऊंगी 
पर जो गयी न आऊँगी    
 
मैं सैयां के साथ चली जाऊंगी तकते रहना
मैं बापस न आऊँगी बस नाम ही जपते रहना
  
तेरी बातें मेरे दिल के समझ नहीं आती है 
जो तू सब कुछ जानती  है तो 
फिर क्यों तडपाती है
आँखों  में तस्वीर तुम्हारी 
सपनो में है चेहरा 
तुझको लेने  आऊँगा में 
बांधके सर पर सेहरा 
लेकर तुझे   जाऊँगा 
सपनो सा  सजाऊँगा 

मैं सैयां के साथ चली जाऊंगी तकते रहना
मैं बापस न आऊँगी बस नाम ही जपते रहना
    

  कृते अंकेश

Wednesday, April 11, 2012

तितलियों की किसे फिक्र है यहाँ
 उनकी उड़ानों को तो देखा भी न  गया
माली ब्यस्त है ख़ुशबुओ का सौदा करने मैं
तितलियों  को तो  सोचा ही नहीं गया

पंखो को फडफड़ाती  रही यहाँ से वहा
कुछ ने उनके सौन्दर्य को निहारा तो
पर उसके आगे कुछ भी न हुआ  ....
तितलिया भी खो ही गयी फिर
बगीचों में कही .....

अंकेश
रात पिघलती गयी
चाँद खोता रहा
जुगनुओ की भीड़ में अँधेरा सोता रहा
मैंने इंतज़ार किया
ओस की बूंदों के गिरने तक
उषा की किरणे आयी
पर तुम नहीं आये....


मैंने भी पाया था
चाँद को ढलते हुए
रात के आगोश में खुद को पिघलते हुए
लेकिन अँधेरा मुझे डराता रहा
यकीन मानो
इंतज़ार मैंने भी किया
बस मुझे ओस की बूंदों का पानी नज़र न आ सका
और फिर आ गयी उषा की किरणे
मिलन की एक आस लेकर

कृते अंकेश 


 
 
यह तस्वीरे जो दिखती है 
हकीकत की परश्तिश की 
यह किस्मत की है जंजीरे 
कभी उलझी कभी सुलझी 

नहीं पर मिल सकी है यह   
हकीकत बस इबादत से
लहू के रंग से सजती 
यहाँ सच की  नुमाइश है 

कृते अंकेश  

Tuesday, April 03, 2012

हैं पथ में अगणित बाधा तो क्या
रुकना तेरी पहचान नहीं
 बस बढे चलो जीवन पथ पर
मंजिल होती हर आसान नहीं

अंधियारे के बाद सदा
रवि की किरणे भी आती है
क्या हुआ रही बाधाये विकल 
 हर मुश्किल हल हो जाती है


जो रहे यहाँ उलझन में सदा
या सुप्त रहे वह छूट गए
मिलता बस  पल भर का मौका
सपने रचते या टूट गए

लेकिन यह मनु की संतान यहाँ
कब इसने हार ही मानी है
हो  दुर्गम पथ बाधाये विकल 
पायी मंजिल जो ठानी है 

कृते अंकेश