Tuesday, March 26, 2013

भर पिचकारी देखो चली रे सवारी 
छूटा जाये न कही कोई अंग 
आज रंगों से सजा दो सारे भेद मिटा दो 
देखो बन जाये सभी एक रंग 
इन्द्रधनुषी रंगों की फुहारों में 
भींग रहा जीवन 
तन को भुला के आज मन को मिला लो 
देखो रंगों का मौसम 
भीनी है खुशबू पकवान सजेंगे 
और रंगेंगा आँगन 
तन भी मिलेंगे मन भी मिलेंगे 
आया रंगों का सावन 

 कृते अंकेश 


Monday, March 25, 2013

चौखट छूटी पर्दा उछला 
माथे ने बिंदिया भी छोड़ी 
हाथो ने कंगन को छोड़ा 
रीति रिवाज की बेडी टूटी 
इतनी आज़ादी पाने में 
जाने कितनी सदिया गुजरी 
भूल रहे जो घूँघट को रखते 
परदे में बस चीज़े छिपती 

कृते अंकेश
जानता हूँ तुम्हे जाना होगा 
स्वप्न है तुम्हारे जिन्हें तुम्हे पाना होगा 
नहीं रोकूंगा तुम्हे करके इंतज़ार 
या कुछ ऐसा जो ला सके ठहराव
मद्धिम पंक्तिया सर झुकाए देंगी विदाई 
और तुम चली जाओगी जैसे एक दिन थी आई 

कृते अंकेश
एक दिन अक्ल मुझ पर कब्ज़ा कर लेगी 
तोड़ सपनो का महल निकाला जायेगा मुझे बाहर 
सम्पादकीय लेखको की तरह में भी करने लगूंगा गंभीर विमर्श 
बंधित हो जाएगी मेरी कलम 
तोड़ दिए जायेंगे मेरे शब्द 
लेकिन तब तक में लिखता रहूँगा स्वतंत्र 
उन्मुक्त हृदय में आए हर विचार को 
बस इसी तरह

कृते अंकेश
नफरत 
रिश्तो की मीनार ढहा दे 
चाहे तो यह पल भर में 
लाशो के अम्बार लगा दे 
चाहे तो यह पल भर में 
रच जाये इतिहास निराला 
चाहे तो यह पल भर में 
और पिला दे विष का प्याला 
चाहे तो यह पल भर में 

भावो को भी शून्य बना दे
चाहे तो यह पल भर में
मुस्कानों का रंग उड़ा दे
चाहे तो यह पल भर में
मैं और तू क्या चीज़ है साकी
यह दुनिया एक प्याला है
नफरत से इसको भर दे तो
प्रलय मचा दे पल भर में

कृते अंकेश
शहर भर की उदासी भी 
जब मायूस हो जाती 
तेरे चेहरे को तकती है 
वही रोनक है पा जाती 

Saturday, March 16, 2013



काश ऐसा होता 
कि उलझे बालो वाली वह छोटी लड़की 
खड़ी  हुई उस फुटपाथ पर 
तकती रही आने जाने वाले चेहरे 
पा सकती जो मन में होता 

काश ऐसा होता 
कि सारे दिन मेहनत करता 
उनके गोदामों को भरता 
जब कोई श्रमिक  घर तक पहुचता 
खुशियों से उसको भी भर सकता 

काश ऐसा होता 
नन्हा बचपन 
आसमान को ताक रहा मंत्रमुग्ध हुआ जब 
पा सकता हर उस सपने को 
जो उस पल दिल में होता 

काश ऐसा होता 
भोजन  की सुगंधे 
पेट की  भूख पहचाना करती 
क्षुदा से पीड़ित नहीं शेष फिर 
रहा कोई भी तन होता 

काश ऐसा होता 
कि शब्दों को रच देने भर से 
यह सब कुछ हो सकता 

कृते अंकेश 

Sunday, March 10, 2013

क्या बताओगे फर्क क्या है 
उम्मीद और इंतज़ार में 
मुझे नहीं पता में तो कर रहा हूँ इंतज़ार 
और खो गया हूँ उम्मीदों के जाल में 

कृते अंकेश

Saturday, March 09, 2013

विघ्न को जो ढूंढता वो  विघ्न का तारक कहा 
 मृत्यु का जो मार्ग रचता पथ प्रदर्शारक कहा 
क्षोभ है न है   क्षमा क्या  अनुसरण उसका करे 
काल से जो न डरा क्या भला उसको कहे 

है नहीं जीवन अनेको मृत्यु भी बस एक है 
एक है अवसर  यहाँ, एक ही जो शेष है 
इतिहास रचते है वही जो न डरे है काल से 
मृत्यु को रखते सिरहाने विघ्न मिटाते भाल से 

क्षोभ उनको है नहीं थे सदा स्पष्ट जो 
और क्षमा संभव नहीं जब चल पड़े दुर्गम पथो को 
अब तो तय करना समय को जीत है या हार है 
शेष श्वासे भी रहेंगी या शेष मात्र संसार है 

कृते अंकेश