Sunday, June 30, 2013

कुछ बूंदे बारिश की घुलकर
एक पहचानी बस्ती से मिलकर
बीता बचपन खोल रही है
और समय को मोड़ रही है 
इन्ही फ़ुहारो सा था बचपन
उछल बिखर कर बीता हर दिन
भीगा तन मन भीगा बचपन 
बचपन की बारिश की यादे
बरस रही है हल्के हल्के
हल्के हल्के हल्के हल्के
खोल रही है तोङ रही है
कुछ परतो को जोङ रही है
घुलकर बारिश की कुछ बूंदे
आज समय को मोड़ रही है

कृते अंकेश

Friday, June 28, 2013

या तो चलने  का मौका दो
या फिर जलने  का मौका दो
कब तक होगी यह रात प्रखर
कब तक अश्रु विप्लव यह शहर
कब तक उमडेगा इन्कलाब
कब तक जीवित है शेषनाग
कब तक चमकेंगे तुच्छ स्वर
कब तक खनकेंगे चंद महर
उड़ता जायेगा यह विषाद
कर दो जाकर अब शंखनाद
है प्रहर यही है घडी यही 
जो हुआ अभी नहीं तो कभी नहीं

कृते अंकेश 
जुड़ते गए 
उड़ते गए 
सपने मेरे खुलते गए 
पंख भरे अपनी उड़ान 
आँखे समेटे एक आसमान
तारो सी हो  दुनिया जिधर 
खिलते हो चेहरे हर एक पल 
पाना वो मंजिल मेरा मुकाम 
ख़त्म नहीं होगा तब तक यह काम 

कृते अंकेश