Wednesday, November 20, 2013


मित्र बनाते है सीढ़िया
चलकर जिन पर आसानी से ऊचे  उठ जाते है हम
देते है हरदम साथ
और लगता नहीं रास्ता लम्बा
जो लगती है ठोकर
तो उठा लेते है पल भर मैं
वो रहते है हमेशा हमारे  हृदयो में
उनके बिना जिंदगी रह  जायेगी एक अधूरी सीढ़ी
उतरेंगे भी कैसे अकेले इस पर से
पल भी लगेगा न जाने  कितना लम्बा
और सोचो क्या ही होगा हाल हमारे ह्रदय का

कृते अंकेश

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