Wednesday, November 26, 2014

मेरी मंगलमय मुस्कान
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान
जा मंगल पर दूत यह अपना
ढूढ़ने लगा जीवन का निशान
बधाइयाँ
पथ कितने, रथ कितने, कितने महल बना लो
चाहो तो अगणित वैभव का अम्बार लगा लो
जब न्याय का शंख बजेगा लुटा हुआ पाओगे
देख फसे सारे मोहरे चेस्ट पैन ही लाओगे
अंकेश
मन के अक्षर तुमसे जुड़कर न जाने अब किस ओर चलेंगे
समझायें कोई इनको मतलब, रस्ते हैं बड़े, कदमो से चलेंगे
कृते अंकेश
मन चंचल सा एक कोना हैं
मन मेरा एक खिलौना हैं
मन दूर हुआ कब तुझसे था
मन को तुझमें ही आ खोना हैं
कृते अंकेश
मन किस प्रहर के गीत गाये अनसुने
मन इस शहर को छोड़ जाए बिन रुके
मन पक्षियो के पंख लेकर जा उड़े
मन तेरे घर की झुरमुटो में जा छिपे
मन ढूंढता वह शाम जिसमे थी तू रही
मन सोचता है रात वो थी क्यो ढली
मन उड़ता है फिर फिर उस पल के लिए
मन जुड़ता है जाकर वो सपना जिए

कृते अंकेश
तन तेरा पंझी
मन मेरा उड़ता
दूर गगन में बादल बनकर पास तेरे जुड़ता
तन तेरा पंझी
सपनो को लेकर अपने अंक में उड़ चल तू
रात अधेरी डरना कैसा
साथ में हर पल हूँ
तन तेरा पंझी
किसने देखा जग यह
कितना और बड़ा
साथ में तेरे चलू वहाँ पर, पथ जहाँ लिये चला
तन तेरा पंझी

कृते अंकेश
मन के बादल पंक्षियो ने रात की बारिश में उतारें
भींगे सारे सपने मेरे, अंखिया अंसुओ से सवारें
मन के बादल पंक्षियो ने रात की बारिश में उतारें
रूठकर चल दी दुपहरी, रात का आँगन घिरा है
तोड़कर खुशिया सुनहरी, कोई सपना ले गया है
मन पहर को ढूंढकर, कैसे समय वह बाँध डाले
मन के बादल पंक्षियो ने रात की बारिश में उतारें

उड़ रही बातें पुरानी या कोई उनको फिर कह रहा है
दर्द अंखियो से पिघलकर या कही फिर बह रहा है
तम के बहाने रात ने भी सम्बन्ध सारे तोड़ डालें
मन के बादल पंक्षियो ने रात की बारिश में उतारें
कृते अंकेश
देखा एक उफनता दड़बा
काठ की खटिया
हाड़ का पुतला
कागज, रद्दी, ढेर था सारा
गिरा कही न उठा दोबारा
स्याही के छीटो में छिपकर
मानव काया रही बिखरती
आज वहा पर अाकर दुनिया
कवि के घर को देखा करती

कृते अंकेश
टूटकर बहता था आंसू
रूठकर कहता था आंसू
रात ने मुझको अकेला आज जाने को कहा है
फिर से मुझको और थोड़ा मुस्कुराने को कहा है
कृते अंकेश
फिर कहाँ पग डाल भवरा
चल पड़ा नदियों के तीरे
रात उसकी हैं अधूरी
ख्वाब उसके हैं अधूरे
फिर कहाँ पग डाल भवरा
चल पड़ा नदियों के तीरे
जोड़कर फूलों की माला
उसने पथ को था सजाया
और परागो से चुराकर
सौरभ गंध भी डाल आया
फिर पथिक ने क्यों न आकर
थे कहे कुछ शब्द धीरे
फिर कहाँ पग डाल भवरा
चल पड़ा नदियों के तीरे

कृते अंकेश
रेतो में फसकर पैर से उलझे
बने किले हाथो से छलके
आसान था कितना पल
जब थे सारे सपने चंचल
बस हाथो को था फैलाना
और सपनो में जाकर उड़ जाना
उछल कूंद मस्ती वो सारी
होती बड़े बड़ो पर भारी
न जाने गया कब फिसल
मेरे जीवन से वो बचपन

कृते अंकेश
फिर क्यों न कहें परिजन वनिता
शब्दों के सहज अनुगामी विरल
अवधि होती हैं अल्प तरल
समता होती है अति सरल
बहते क्यों हैं संदेशों में
तकते क्यों हैं अनुदेशों में
रखते क्यों हैं स्वभाव विकल
जुड़ता हैं संशय बन विह्वल

कृते अंकेश

मौन अभिव्यक्ति है आँसू की
आँसू मौन की नही
कृते अंकेश
शर्म क्या है आंसुओ में
क्यो भला उनको छिपाना
मेरी कविता ने पिरोया
बदला है उनका ठिकाना
ढूंढती है दर्द को भी
यह कलम जाकर जड़ो में
टूट मुरझाया गिरा क्यो
फूल इनको खोज लाना

कृते अंकेश
दीपक बन जगमग जग कर दो
झोली सबकी खुशियों से भर दो
अन्धकार अज्ञान को हर कर
ज्ञान प्रकाश से जग को भर दो
तोड़ विषमता की दीवारे
समरस सरल यह जीवन कर दो
हर पीड़ा दुर्बल तन मन की
जग ज्योति को जगमग कर दो

कृते अंकेश
मेघ बरसे हो अभी क्यों
जग यहाँ सोया हुआ
कौन जाने ख्वाब में किस
अब यहाँ खोया हुआ
रात बनकर एक सहेली
करती रहीं बाते देर तक
पास आया जब सवेरा
चल पड़ी आँखें फेर कर
नीद ही बस अब ठिकाना
साथ इनका खोया हुआ
मेघ बरसे हो अभी क्यों
जग यहाँ सोया हुआ

कृते अंकेश
शहर की झोपड़िया सन्नाटे को समेट लेती है, इनमे लगी कंक्रीट बड़ी सख्त होती है जिसके आर पार रिश्ते बमुश्किल ही गुज़रते है (Ankesh)
मिलन अकस्मात् होता है लेकिन पहचान नहीं
पहचान अत्यत्न जटिल प्रक्रिया है
ऊहापोह मन की शब्दो में घुलती जाती है समय के साथ
लोग उभरते है मन पर
शीशे पर जमी हुई कोहरे की भाप की तरह
कोहरा हल्का या गहरा
पानी बनकर ऊँगली पर छा जाता है
चाहो तो सम्भालो और न चाहो तो बहा दो
वरना पहचानने के लिए तो उम्र भी कम है

कृते अंकेश
तुमसे प्यार करना स्वप्न से प्रणय करना था
जहा सिर्फ जीवन भर लम्बा इंतज़ार पनपता है
आज भी अँधेरा तुम्हारी अनुपस्थिति का एहसास नहीं कराता
Ankesh Jain
तुम्हारा प्रेम कांच की तरह था
स्पष्ट
जहा कुछ छिपाया नहीं जा सकता
लेकिन यह जब टूटा तो कांच की ही तरह टुकड़े बन बिखर गया
चुभते हुए यह टुकड़े दर्द देते है
हर एक टुकड़े में तुम्हारी ही तस्वीर लिए

कृते अंकेश
कुछ शब्द बस इंतजार करते रह जाते है
होठो के बीच फसकर
यदा कदा आँखें उनमें से कुछ को बाहर निकालती तो है
लेकिन यह भाषा मुश्किल से ही किसी को समझ आती हैं
लोग यहाँ मौन को पढ़ना भूल चुके है
जीवन के शोर में
और कुछ शब्द बस इंतजार करते रह जाते है

कृते अंकेश
प्रेम कुछ ढाचो या कुछ शब्दो में सीमित रह जाने वाली चीज़ नही
न ही यह कुछ चिठ्ठियो में सिमट पाता हैं
कुछ शामे इसे अपने इर्द गिर्द पाती तो जरूर हैं
लेकिन रात के अंधेरे में बहकर यह कही दूर निकल जाता हैं
कृते अंकेश
कोई न छेड़े समय को
इसकी है उलझन निराली
ढूंढा मिला न कही पर
रहता था जहा वक़्त खाली
कृते अंकेश
हर ज़िंदगी तीन पहलुओ में बटी होती है
सोशल, पर्सनल और सीक्रेट
सोशल वह हिस्सा है
जिसे आप देख सकते है
पर्सनल वह हिस्सा है
जो आपको दिखाया जा सकता है
सीक्रेट इन हिस्सो से बचा हुआ वह अंश है
जिसमे पहुचना बेवजह आफत को मोल लेना है
यही तो वजह है कि इसको छिपाया है

कृते अंकेश
जिसे प्रदर्शन की आवश्यकता पड़े
वह प्रेम नहीं है
प्रेम मौन में भी हो सकता है
प्रेम विध्वंश में भी
प्रेम सभ्यता के साथ हो सकता है
प्रेम समाज के विरूद्ध भी
प्रेम अनोखा भी हो सकता है
प्रेम सरल भी
लेकिन जिसे प्रदर्शन की आवश्यकता पड़े
वह प्रेम नहीं है

कृते अंकेश
कहानी अधूरी ही रह जाती
अगर तुम छोड़ देते सपनो को सिरहाने
उबलते रहने के लिये हमेशा
मिट्टी में पड़े निशान
आवाज है तुम्हारे कदमो के जाने की
सुनता हू में आज भी
इनका सूनापन

कृते अंकेश
मन भ्रमर मत मान कहना
चंद्र चंचल चितवनो से
है भला बस चुप ही रहना
मन भ्रमर मत मान कहना
रश्मि किरणें भाल पर सज
बेधती जाती ह्रदय को
केश घुघराले घटा घिर
छेड़ती जाती प्रलय को
देख इनके जाल मे
अब नही तुझको है बहना
मन भ्रमर मत मान कहना

कृते अंकेश
भावनाए मनुष्य में जन्मजात होती है
हार्मोन्स का फ्लो इन्हे एपीटौम पर ले जाता है
बच्चे भावनाओ की क्षणभंगिमा एवं निश्छलता का सजीव उदहारण है
आँखो के आंसू कब मुस्कान में बदल जाये पता ही नहीं चलता
उनकी मेमोरी पूर्ण विकसित नहीं होती
इसलिए वह अपने से छल नहीं कर पाते
इसीलिए भावनाओ का प्रदर्शन सभ्य समाज में बचपने के नाम से जाना जाता है
विकास के क्रम में हम भावनाओ का दमन करते है
और एक निष्ठुर ह्रदय बन जाते है

कृते अंकेश