Friday, December 30, 2011

तेरे उतारे हुए दिन संभाल कर रखे है यादो में
बहुत कुछ भूला पर यह  फिर भी याद रहे
आज भी जब खुलते है  तो सिलवटे तक नहीं दिखती
लगता जैसे गए रोज़ ही तो उतारा गया था इनको
और संभाल कर रख दिया गया था फिर करीने से उस कौने में
समय के बक्से में बंद करके
लेकिन चाबियाँ भूल जाता हूँ कभी कभी
भटकता हूँ फिर यहाँ से वहां
बाहर भी तो बारिश बस तेरी ही याद दिलाती है
फिर अन्दर आता हूँ तो देखता हूँ
की बक्से पर तो कोई ताला ही नहीं है
शायद अभी भी कोई सोचता है कि इनको फिर से निकाला जायेगा
और दिन को फिर से उतारा जायेगा

कृते अंकेश

Wednesday, December 28, 2011

आहिस्ता हर पल गुज़र गया
देखो अब यह भी साल चला
कुछ हलचल लाकर कभी गया
खामोश कही  यह चला गया 

 सपनो के बादल बने कही

खुशियों की बारिश हुई कही 
कुछ राहे खोयी रही यहाँ 
अनजान किनारा कही मिला 

सुधबुध थे जो अपने सपने  में
जिनकी किसको भी फ़िक्र नहीं
वो राजमंच  पर आ चमके
उनसे सत्ता भी डरी हुई  

कुछ ने ठोकर खा सीखा चलना
कुछ को यह चलना सिखा गया

जो  भटके  थे इस वीराने में
उनको मंजिल यह बता गया

आभार तुम्हारा है हर पल
जो कुछ भी तुम दे जाओगे
है वही सम्पदा अपनी तो
ले  नए वर्ष  में जायेंगे

कृते अंकेश

Sunday, December 25, 2011

ओ हेनरी कि कहानी से प्रेरित 

मिस्टर शाह  काम के अम्बार से परेशान थे
कभी देर से बजते टेलीफ़ोन  को उठाते
तो कभी कंप्यूटर की स्क्रीन को देख चकराते
ऑफिस का यह व्यस्ततम  महीना था
और मिस्टर शाह से काबिल वहा दूसरा कोई नहीं था
इतने में जूली ने फाइलों का ढेर लाकर मेज़ पर रख दिया  
और बॉस की उस पर्सनल  सेक्रेटरी के कपड़ो से आती सुगंध ने मिस्टर शाह का ध्यान भंग कर किया
लेकिन आज जूली के अंदाज़ में कुछ परिवर्तन था
और चंचल सी दिखने  वाली उस  लड़की के व्यव्हार  में गंभीरता का पुट था
वह आई और एकदम शांत होकर अपनी कुर्सी पर बैठ गयी
और दोपहर देर तक बिना यहाँ वहा जाये वही बैठी रही
जब दोपहर बाद गार्ड अंदर आया
तो जूली ने उसे बुलाया और पूछा
क्या नयी सेक्रेटरी के लिए अभी तक कोई आया
यह सुन मिस्टर शाह चोके
गार्ड ने कोने में पड़ी कुर्सी की और इशारा किया
और शायद जूली और मिस्टर शाह दोनों ने एकसाथ उस कुर्सी की और अपना ध्यान किया
और पता नहीं क्या हुआ की उसके बाद मिस्टर शाह को न तो बजते हुए टेलीफ़ोन की फिक्र रही
और न ही कंप्यूटर स्क्रीन की और उनकी  निगाह गयी
जूली उस नयी लड़की को देखते ही मायूस  हो गयी
इससे पहले कि चपरासी बॉस के केबिन में जाता
बॉस बाहर आये और जूली को आने वाले सप्ताह में करने वाले सारे काम बताये
जूली कुछ पूछ  पाती कि चपरासी  बोला
सर वीं टाइम वालो ने नयी  सेक्रेटरी को भेज दिया
यह सुन बॉस ने शंकित होकर कहा
मैंने कब नयी   सेक्रेटरी  के लिए बोला
जाओ उसे वापिस जाने के लिए बोलो
और मेरे केबिन में जोह्न्सोंस की फाइल भेजो 
कोने में कुर्सी पर बैठी वह लड़की चपरासी का सन्देश सुन कर चलने के लिए उठी
बाहर जाते हुए रास्ते में  मिस्टर शाह की मेज़ भी पड़ी
फाइलों में खोया जवान अभी तक पता नहीं किन खयालो में खोया हुआ था
की उसे उस कन्या के आने या जाने का पता ही नहीं चला
बाहर जाते हुए जब उस लड़की ने चपरासी को उसके सहयोग के लिए धन्यवाद् कहा
और उस मधुर स्वर ने मिस्टर शाह को उनकी काल्पनिक दुनिया से बाहर किया
वह बोले "में यह कर कर ही रहूँगा"
वह तुरंत बाहर गए
उनके हाथ में अभी भी पेन और कुछ कागज़ थे
लड़की अभी गेट के पास ही थी
मिस्टर शाह ने उसके सम्मुख जाकर कहा
मुझे आपका नाम भी नहीं पता
और मेरी जिंदगी व्यस्तता से भरी हुई है
मेरे पास बिताने के लिए बस एक क्षण है
और में उस क्षण में आपसे प्रेम करता हूँ
यह क्षण मैंने उन लोगो से चुरा लिया है
वहा वह मेरा इंतज़ार कर रहे है 
लेकिन यह क्षण बस मेरा है
और मैं यह आपको  दे रहा हूँ 
वह लड़की स्तब्ध थी
मिस्टर शाह बोले
क्या आप इतना भी नहीं समझती 
क्या आपको प्रेम का अर्थ नहीं पता  
मैं आपसे विवाह करना चाहता  हूँ
 पहले तो उस लड़की ने अजीब सा व्यवहार किया
फिर वह मुस्कुरायी
उसने अपनी बाहों को मिस्टर शाह के कंधे में डाला
और बोली पहले तो में शंकित थी
लेकिन अब सब कुछ ठीक है
क्या तुम भूल गए
पिछली शनिवार को हम दोनों ने उस चर्च  में विवाह किया था
और मुझे डर था कि काम में तुमने मुझे बिलकुल भुला दिया था

  
अंकेश Jain

Monday, December 19, 2011


मेरा घर
घर के सामने सड़क
सड़क के उस पर हलवाई की दुकान
गरमागरम जलेबिया और कचोरियाँ
बच्चो के झुण्ड
सुबह सुबह स्कूल जाते बच्चे

ऊनी वस्त्रो से झांकते नन्हे नन्हे चेहरे
घडी की टिक टिक
कुछ आठ बजे का समय
सूरज का नामोनिशान नहीं
हल्का सा धुंध है
मेरे पैरो पर अभी भी रजाई है
हालाकि खिडकियों से आती हुई ठंडी हवा चहेरे को कबका जगा चुकी है   
लेकिन आँखे अभी भी अर्ध्सुप्त है
मैं खुश हूँ यह सोमवार सभी बन्धनों से मुक्त है

कृते अंकेश

Sunday, December 11, 2011

हे गीत मिलन हे माधुरी
हे स्वरगर्भित प्रियवासिनी
अनुरंजित सामीप्य तुम्हारा
जीवंत तुम्हारी रागिनी
गीत  मिलन हर पल हर क्षण
अनिरुद्ध  हो तुम  युग वासिनी
स्वरसाध्य प्रिये मुस्कान मधुर
है सत्य या दिवा स्वप्न यह रागिनी

कृते अंकेश 
आवहु मिली सब खेले भाई
बहु दिन पाछे यह घडी आई
मत  पूछो कहा ऋतु गवाई
सम्मुख तोहरे अब जानो पाई

बस इह ठोर जमेंगे अब मेले
रहे वहा परदेश अकेले
तेरी सोह न भूले पाई
चाहे भले ही बरस बितायी

कृते अंकेश 

Saturday, December 10, 2011

मैं कौन हूँ
बस एक दर्शक
तुम एक कुशल नर्तकी
शब्द बध्द तुमको  करने का दुस्साहस में नहीं करूंगा
तुम बस यु ही गीत लिखो
अपने करतल
अपनी गतियो से
अपना ही संगीत रचो
अपने इस आवेग  में बहकर जीवन का हर गीत रचो
मैं तो बस  शब्दों में खोकर
उन  मधुर रसो का पान करूंगा
मैं कौन हूँ
बस एक दर्शक
तुम एक कुशल नर्तकी


कृते अंकेश

Friday, December 09, 2011

संदेह 

अचानक आई बारिश ने मुझे ऊपर से नीचे तक पूरा भिंगो दिया.......  भींगने का कोई डर शेष नहीं  रहा ...... मुझे संदेह है कि भ्रस्टाचार में डूबे लोगो को कोई डर होता होगा ||

 कृते अंकेश

Thursday, December 08, 2011

भेडियो को आज भी शहरों मैं पनाह नहीं मिलती
वो तो कुछ इंसान ही है
जिनके कृत्य ऐसे है
वरना आदमी और भेडियो के अंतर को समझने के लिए दो आँखे कम नहीं होती

कृते अंकेश
अकुशल श्रम की लागत
अब भी रोटी ही होती है
क्या जाने वो बेचारे
श्रम की कीमत कितनी  छोटी है

कृते अंकेश 

Wednesday, December 07, 2011

नशा 

तुम्हारी कविताओ में कुछ भी तो नहीं मिलता
उसने कहा
और चाय का प्याला पकड़ा दिया
देखो इस चाय की सुंगंध को
क्या ला सकते हो इसे अपनी कविताओ मैं
मैं जब भी लेता हूँ इसकी चुस्कियां
देती है एक स्फूर्ति का आनंद
वह बोला,
मेरे  दोस्त
जिसे तुम आनंद कहते हो
वह तो मात्र एक नशा है
और आप बस उसी नशे में खो जाते हो, मैंने कहा,
तो क्या आपकी कवितायेँ किसी नशे से कम है,
क्या आप नहीं खो जाते है इनमे
उसने चाय का प्याला मेज़ पर रखकर कहा 
हकीकत तो यह है यहाँ सभी नशे के शौक़ीन है
बस सबकी पसंद अलग अलग है

कृते अंकेश


Monday, December 05, 2011

इंदु क्या छवि तुमने बसायी
निशा श्यामल सी होकर आयी
खेल है या यह कोई पुराना
हूँ  रहा मैं जिससे अनजाना
अब  ढूंढता निज को भटकता
होगी  मिलन की आस क्या
साथ जब तुम ही रहे न
तो भला उन पर विश्वास  क्या

सेकड़ो तारे भले ही
नभ में हो जो टिमटिमाते
घिरती घटा काली घनी है
छोड़ अपने जब है जाते
होना  सवेरा है सुनिश्चित
पर रात का लम्बा सफ़र है
कैसे चलू तू ही बता
मीलो छाया तम का कहर है

कृते अंकेश

Sunday, December 04, 2011

स्वप्न है मेरा यह जीवन
कल्पना मेरी ही है
दिख रहा जो शांत सम्मुख
स्वप्न की कर्णभेरी  है
बस सजाता कल्पनाएँ

स्वप्न से श्रृंगार करता
अज्ञात हूँ सुख से दुःख से
स्वप्न में ही प्यार करता
कुछ अधूरे  कुछ अनोखे
बहुप्रतीक्षित स्वप्नों की ढेरी
कल्पनाओ से सजी है
बस यहाँ दुनिया यह मेरी

कृते अंकेश