Sunday, December 30, 2012

एक बात पूछू सच बतलाना 
सौंदर्य किसे कहते हो ?
दीवार के सिरहाने खड़े होकर उसने अचानक से पूछा 
अब तक कागजों में खोया हुआ मेरा चेहरा 
उसके अधरों के अनुकम्पनो को निहारने ल़ग़ा 
सौंदर्य सामंजयस्य है आकांक्षाओ और अनुभूतियो का 
मैंने इतना ही कहा
लेकिन आकांक्षाओ की तो सीमा ही नहीं 
फिर कैसा सामंजयस्य, वह बोली 
अनुभूतियाँ करती है सीमित विस्तार आकांक्षाओ का 
सौन्दर्य तो मात्र कल्पना है संतुष्टी की 
जिस विषय ने संतुष्ट कर दिया 
बस वही परख है सौन्दर्यता की 
यह सुनकर वो हस पड़ी 
मानो सौन्दर्य ने उसे सराबोर कर दिया 

कृते अंकेश

Saturday, December 29, 2012

कहने को तो बेहाल सा गया 
लेकिन कलेंडर से एक साल गया 
उड़ते रहे इरादे 
खिलते रहे थे सपने 
कानून के नुमाइन्दे 
क्यों बन गए दरिन्दे 
इनके जिस्म से उड़कर 
ईमान जाने कहा  बिखर गया 
इंसान हर एक रोया 
सपना  किधर गया 
लेकिन कलेंडर से एक साल निकल  गया 

कृते अंकेश 

Saturday, December 22, 2012

नन्हे से जीवन में भरती जो अपने प्राणों की सरगम 
जिसकी ऊँगली ने पकड़ दिखाया कदमो को सारा आँगन 
जिसके आँचल की छाव तले झटपट सो जाया करते थे 
अपनी टूटी फूटी बातो से हम जिसे सताया करते थे 

जिसने देखा हमको पल पल चलते बढते गिरते उठते 
जिसने खुद को भी लिया भिंगो अश्रु जब इन आँखों से बरसे 
जीवन के प्रतिशोध में भी जो जलकर रही सदा मधुरित 
जिसकी मुस्कानों ने घोला इन कर्णौ में बस अमृत 

वो मेरी माँ भगवान् है मेरी मेरे मंदिर में रहती है
आओगे अब कब घर बापिस बस इतना ही कहती है
में क्यों उस आँगन को इतना दूर मगर अब पाता हूँ
चाहकर भी न बार बार उस मंदिर में जा पाता हूँ

कृते अंकेश
बेरंग सा तार है 
जुड़ रहा हर बार है 
बारिशे ख्वाहिशे 
रूठना बेकार है 

जिंदगी अब कहा 
ले चली है मुझे 
देख मेरा यार 
मेरे साथ हर बार है 

ठोकरों में छूटना
छूट कर टूटना
टूट कर फूटना
फूट कर रूठना

रूठना ही तो
मिलाता बार बार है
बेरंग सा तार है
जुड़ रहा हर बार है

कृते अंकेश

Wednesday, December 19, 2012

मिटती रही आवाज़ फिर भी 
क्यों रहे तुम मौन थे 
लुटता रहा मेरा शहर 
जो लूटते वो कौन थे 

सपने उड़े पल में कही 
टूटी हसी उधडी ख़ुशी 
अब मौत से लडती जिंदगी 
फिर भी रहे क्यों मौन थे 

प्रश्न उठता है सदा 
क्यों मात्र नारी अस्मिता का 
दंश मिलता क्यों मुझे 
जब मेरा ही उत्पीडन हुआ

क्यों नहीं खुशिया मुझे 
मिल जाती है फिर लौट कर 
शायद हसू  खुलकर कभी 
जो साथ आये  लोग सब 

मिटती रहेगी वरना सदा 
आवाज जो यह  मौन थी 
शायद रखेगा याद कोई 
टूटी कहानी कौन थी 

कृते अंकेश 

Monday, December 17, 2012

जा महको उस बेताब इश्क में जो में तुमसे करता आया 
जा चहको उस प्रणय गान में जिसको मैंने है गाया 
जा बहको उस आनंद मान में जो लिए तुम्हारे सजवाया 
जा झूमो उस जीवन प्राण में जहा सुख का रहा सदा साया 

मेरी आहो को नज़र अंदाज़ करो , यह नहीं तुम्हारे हिस्से है 
खुशियों के साए से गुजरो, दुःख नहीं तुम्हारे किस्से है
आज़ाद उड़ो उन्मुक्त गगन में, में बंधन भी सह जाऊंगा 
तुम जीत सको सारी दुनिया, मैं हार तुम्हे भी जाऊंगा 

कृते अंकेश

पंखो के परदे
उड़ते गिरते चलते फिरते
ढलते बुझते, फिर फिर खिलते
खिल कर मिलते, मिल कर खिलते
पंखो के संग संग थे हिलते
उम्मीदों ने पंख लगाकर
पर्दों को आकाश दिखाया
जीवन ने सपनो को पाकर
मुस्कानों को पास बुलाया
अहसासो के आवाहन में
शामिल जीवन का सूनापन
पंखो के पर्दों में खोया
यह तन यह मन सारा जीवन

कृते अंकेश
वो उलझता रहा 
तारीफे करता रहा 
सुन्दर फीतों की 
में भी चुपचाप सुनता रहा 
प्रत्युत्तर में सिर हिलाता रहा 
इंतज़ार करता रहा उसके जाने का 
अपने नंगे कदमो को आगे बढाने का 

कृते अंकेश
विरह या मिलन 
सोये हुए दोनों अकेले 
परस्पर नजदीक 
शून्य स्वप्न 
आत्म चिंतन 
या मात्र बंधन 
जीवन 
क्या छल है जीवन 
ढकता रहा अन्धकार 
करता रहा पुकार 
या शायद निवेदन

कृते अंकेश

Sunday, December 09, 2012

तुमको जिद थी मिलने की 
मुझको जिद थी चलने की 
दोनों ने बस जिद को पकड़ा 
साथ हमारा टूट गया 
कोई साथी छूट गया 

बारिश भी तो रूठी थी 
पुरवैया भी छूटी थी 
मौसम ने बस जिद को पकड़ा 
फिर से सावन रूठ गया 
कोई साथी छूट गया 

लहरें अब भी चलती है 
शामे अब भी ढलती है 
लोगो ने बस जिद को पकड़ा
और किनारा रूठ गया 
कोई साथी छूट गया 

कृते अंकेश

Wednesday, December 05, 2012

कैक्टस ये दुनिया है अनजान 
इसे सच की है क्या पहचान 
सजाती है गुलाबो को गले में यह लगा नादान
कैक्टस ये दुनिया है अनजान 

इरादे नेक इनके कब 
दिखावे करते है बस सब
नहीं अचरज मुझे होता 
जो मिलता तुम्हे कौने में स्थान 
कैक्टस ये दुनिया है अनजान 

यह आरामो में है खेले
हसीं है इनके सब मेले
पता इनको क्या दुःख तुमने झेले
बनायीं रेत में पहचान
कैक्टस ये दुनिया है अनजान

कृते अंकेश
में हर एक पल में जीता हूँ 
में हर एक पल में मरता हूँ 
हर पल मेरा एक सपना है 
में सपना पूरा करता हूँ 

में पंखो को फैलाता हूँ
में आसमान में उड़ता हूँ
में दूर गगन तक जाता हूँ
में तारो से भी मिलता हूँ

में जीता हूँ मुस्कानों में
में अश्को में भी घुलता हूँ
में चलता हूँ खुशियों के संग भी
में अफसोसो में पलता हूँ

मेरे साए में जीत छिपी
मैं हारा भी तो करता हूँ
लेकिन उठता फिर फिर चलता
में नहीं कभी भी डरता हूँ

कृते अंकेश