Thursday, July 26, 2012


कुछ व्यक्ति मात्र को अपराधी घोषित करने से 
अपराध खत्म नहीं होते 
यह तो विक्षिप्तता मात्र है तंत्र की 
जो जन्म देता है विचारो को 
बहकाता है
उकसाता है 
पथ भ्रमित करता है 
उत्प्रेरित करता है 
तत्प्रेरित करता है 
और फिर छोड़ देता है भटकने के लिए  
लेकिन विचार कभी नहीं मरते 
अपराध ऐसे ख़त्म नहीं होते

अंकेश 

Sunday, July 22, 2012

They ask for moon
whether its far or near
they don't care
hunting souls
so determined
profound skills 
holy shrine 
to my surprise 
they even don't know how to climb

Ankesh



Thursday, July 19, 2012

आखिरी    उडान

बाबूमोशाई, एक आवाज़, जो आज भी कानो में गूजती हुई सजीव लगती है, आनंद, सिनेमा  का एक किरदार मात्र न होकर व्यक्तित्व का परिचायक हो गया, वो हसने का अंदाज़, जिसे दर्द की मानो भनक भी नहीं है और जो सत्य से डटकर सामना करने को तैयार है | अभिनय का वो निराला अंदाज़, जहा अभिनेता की पहचान उसके किरदारों से होने लगे, निसंदेह एक बेहतरीन अभिनेता की निशानियाँ है | आनंद का आनंद जहा जीवन से कभी नहीं हारता है तो अमर प्रेम का आनद एक हारे हुए जीवन को जीता है, लेकिन दोनों ही किरदार जीवन को सशक्त  रूप से जीने की एक बेहतरीन मिसाल देते है | स्वर बदलते गए,  लेकिन ह्रदय के भावो को चेहरे के अनुभावो मात्र से व्यक्त करने की प्रतिभा में निपुण   राजेश खन्ना अपने हर किरदार में एक नयी जान डालते चले गए | भारतीय सिनेमा जगत के प्रथम महानायक का सम्मान उन्हें उनकी इसी प्रतिभा के फलस्वरूप मिला | सिनेमा जगत एवं दर्शक जगत उनके इस योगदान का सदेव ऋणी रहेगा |

Wednesday, July 11, 2012

रात अँधेरी, पिया वावरा मेघ मचलते बरसो न
सूखे सूखे सदिया बीती  शुष्क  अधर  है  बरसो न
उन्मादों  के  आवाहन  से  जूझ   रही  यह काया  है
इस  काया के अंतरगों में शामिल होकर बरसो न

चली निशा है क्या ढूँढने, जीवन का रंगमंच सजा
प्यासी  काया, प्यासा जीवन, प्यासा ही अंतर्मन यहाँ
इस विदग्ध  प्यास से मुझको तृप्त कराते बरसो न
इस काया के अंतरगों में शामिल होकर बरसो न

तेरी वाणी, तेरी छवि या तेरी ही मुस्कान यहाँ
तेरे ही इन भाव बिभावो  में खोया जीवन है यहाँ
इस जीवन को  विरह भाव से मुक्त कराते बरसो न
इस काया के अंतरगों में शामिल होकर बरसो न

मेरा क्या उन्माद हूँ पल का, पल में  ही मिट जाऊँगा
लेकिन इस पल के रहते में गीत मिलन के गाऊँगा
तुम भी  मेरी मुस्कानों  में मुस्काने भर  बरसो न
इस काया के अंतरगों में शामिल होकर बरसो न

कृते अंकेश

Tuesday, July 10, 2012

नारी स्वर 

घूँघट में बंद रखते हो
आँखों को नीचा करते हो
साँसों पर सीमा कसते हो
फिर कहते हो साथ चलो
पहले चलने का अधिकार तो दो

सीमित सपनो का अस्तर है 
 बिछी हुई चारपाई है
क्या इस  जीवन की परिधि
बस शादी और सगाई है
यह  भी है काया मानव की
इसको स्वतंत्र संसार तो दो
फिर कहते हो साथ चलो
पहले चलने का अधिकार तो दो

न चिंतित हो मेरे कल को लेकर
मेरा कल मेरा सपना होगा
मेरी अभिलाषा बस इतनी
मुझको सपने रचने की हिम्मत देना
है पाला नन्हे तन को बरसो मैंने
अब नन्हे मन को पलने का अधिकार तो दो
फिर कहते हो साथ चलो
पहले चलने का अधिकार तो दो

क्यों वस्त्रो की सीमा तन  पर
क्यों शील का है प्रतिबन्ध यहाँ
क्या कभी किसी पुरुष ने भी
इतना है  उपहास सहा
इस चरित्र  के चित्रण में
पहले उचित मानको को स्थान तो दो
फिर कहते हो साथ चलो
पहले चलने का अधिकार तो दो

 है नहीं यह सीमित तन और मन
हर क्षेत्र को इसने खखोला है
जीवन के हर स्तर को
अपनी गुणवत्ता से तौला है 
इस जीवन को भी स्वतंत्र बन
पथ विकास  पर चलने का अधिकार तो दो
फिर कहते हो साथ चलो
पहले चलने का अधिकार तो दो

कृते अंकेश

Sunday, July 08, 2012

हसरतो का क्या
वो तो तमन्नाये है दिल की
बन बेआवरू उमड़ेगी हर पल हर घडी
उम्र के बेवाक पल और जीवन का यह मोड़
बहकायेगा हजारो बार
मन करेगा उतर जाने को समुद्र में
और जाने को लहरों के पार
हिमाद्राक्षित चोटिया नजर आएँगी नजदीक
जो हो सकती है मीलो दूर कही उस पार
पर नहीं है गलत इनमे से कुछ कर गुजरना
क्यूंकि वक़्त भी नहीं आएगा यह बार बार

कृते अंकेश

Friday, July 06, 2012

जाग्रत मन 
या सुप्त तन 
रात के इस प्रहर  में विलुप्त जीवन 
ख़ामोशी 
गहन ख़ामोशी 
अवरुद्ध करती अंतर्मन 
कैसा प्रयत्न 
खोजते क्या नयन 
जाग्रत मन 
या सुप्त तन 
रात के इस प्रहर में विलुप्त जीवन 
मधुर करुण क्रंदन विषाद 
कैसा है नाद 
ओ खामोश व्योम 
है कौन पास 
करते हो किसका इंतज़ार 
है दूर किरण 
जाग्रत मन 
या सुप्त तन 
रात के इस प्रहर में विलुप्त जीवन 

कृते अंकेश 
 

Thursday, July 05, 2012

मेरा स्वप्न 
है एक नयी दुनिया 
सीमाओ से परे 
जहा मनुष्य बेफिक्र विचरण करे 
लेकिन 
नहीं है साधन अभी मेरे पास
इसलिए अभी बस लिखता हूँ 

कृते अंकेश 

Wednesday, July 04, 2012

मौत की परवाह हमने कब की है मगर
एक जिंदगी तेरे लिए ही  जीकर भी जायेंगे

कृते अंकेश

Sunday, July 01, 2012

किसका स्वागत करती रहती
है चंचल मुस्कान तुम्हारी
किन अधरों को जाकर तरती
है चंचल मुस्कान तुम्हारी
किन स्वप्नों में जीवन भरती
है चंचल मुस्कान तुम्हारी
किन अंखियो में जाकर हसती
है चंचल मुस्कान तुम्हारी

छूकर जाती मेरे मन को
है चंचल मुस्कान तुम्हारी
विस्मृत कर जाती नैनों को 
है चंचल मुस्कान तुम्हारी
आभादीप्ति बन चेहरे पर  इतराती
है चंचल मुस्कान तुम्हारी
मेरे जीवन में घर कर जाती
है चंचल मुस्कान तुम्हारी

कृते अंकेश