Sunday, October 28, 2012

एक आहट साँसों के स्वर से 
मिटती गयी तवस्सुर से  जुड़ के
 बरबस अनायास आ निकली 
अंखियो  से मणिको की टोली 
खेल रहे हम उससे होली 

रंग भी अपने रहे निराले 
तोड़ तोड़ कर सपने डाले 
और जला दी उनकी होली 
साँसों ने आवाज़ न खोली 

उड़ता धुआ रहा चिल्लाता 
कब तक छाएगा सन्नाटा 
गयी नहीं पर  ख़ामोशी खोली 
रहे खेलते बस हम होली 

कृते अंकेश 
तोड़ लकीरों को  आ लिख ले 
सपनो की फरियाद नहीं 
रिश्ते जाति देश दीवारे
कुछ रह मुझको याद नहीं 
एक आँगन में साँसे ले 
और एक गगन में भरे उड़ान 
एक उम्मीद ही रहे सर्वोपरि 
खुशिया पाए हर इंसान 

कृते अंकेश 

Friday, October 26, 2012

जूते खा कुर्सी मिली, कुर्सी से धनवान 
जो न जूते खाए वो, रहे आम इंसान ||   
इज्ज़त थी तब धन नहीं, अब धन  है इज्ज़त नाही
इज्ज़त की किसको पड़ी, जब बेईज्ज़त पूछा जाये ||   कृते अंकेश 

गहन वेदना 
अवलंबन है अपरिचित अनुभूतियो की 
अविस्मित अनजान अनकही 
स्वरविहीन जीवित बस मध्य रही 
पूर्ण हो तुम आज भी 
जब ढूंढते विश्राम हो
ठोकरे ही प्रेयसी
जिनसे गिरे हर शाम हो
स्वच्छता या सरलता
बस यही आभूषण तेरे
दिव्य है वो पुष्प जो
थे रहे तुझको घेरे
चेतना तुझको लिए जाती रही अस्माक में
पूर्णता ही बस रही सदा तेरे साथ में

कृते अंकेश

Monday, October 22, 2012

पत्ते पतझड़ को रहे ताक 
टूटे डाली से हो अवाक् 
ठोकर में उड़ते इधर उधर 
अब इनकी किसको रही फिकर 

छूटी डाली और भ्रम टूटा
बस पल भर में ही घर छूटा
अब तो एक झोके का एहसान
ले चले कहा बना मेहमान

ऐसे सपने बस रहे टूट
हर पल जाते वो कही छूट
और में इन सबसे हो अनजान
रचता फिर से स्वप्न एक नादान

कृते अंकेश
बर्तन चाँदी के खनक रहे 
जेवर सोने के भड़क रहे 
मिटटी के प्याले रहे सुप्त 
तप क्रोधानल में बने युक्त 

आ उमड़े है मेघो के झुण्ड
हो गयी कालिमा छाया है धुंध
बरसे नैना कुछ अविस्तार
थे रहे कहा जब की पुकार

लहरें टकरा कर गयी टूट
सागर से भी वो गयी छूट
लेकिन छोड़े तट पर निशान
नयी लहरें जिसे रही पहचान

कृते अंकेश

Tuesday, October 09, 2012

अनकही बातें मगर जब याद आती है 
छूके होठो को कही तन्हाँ निकल जाती है 
सोचता हूँ क्यों रुका था क्यों न कह दिया 
शब्द आँखों में भरा था क्यों न बह दिया 
खामोशियाँ ही फिर सदा मुस्कुराती है 
अनकही बातें मगर जब याद आती है 

भीड़ में होकर कही बस  फिर बिछुड़ते  है 
तन्हा खयालो में कहा अब लोग मिलते है 
रास्तो का मंजिलो से बस कुछ रहा  दोस्ताना 
बाकि सफ़र जाना पहचाना या अनजाना
अब तो हकीकत भी कहानी बन ही  जाती है 
छूके होठो  को कही  तन्हा निकल जाती है 

कृते अंकेश