Friday, June 29, 2012

तुम चिल्लाया करते हो भूख भूख
हो कम्युनिस्ट क्या चाहते हो

भोले भाले मजदूरों को
क्यों ज्ञान का पाठ सिखाते हो

देखो पैसे की महिमा को
समझो जानो फिर बात करो

मर जाओगे यु ही भूखे
न तंग यहाँ  हालात करो

हमको तो मिली है विरासत मैं
यह लूट की आदत जेनेटिक

न उलझो हमसे व्यर्थ यहाँ
यह सिस्टम  है पूरा  सेप्टिक 

कृते  अंकेश 

Tuesday, June 26, 2012

हवा के झोको ने  पूछा महल के वीरानो से
क्या आता जाता है कोई
इन बंद दरवाजो से
खिडकिया है  खुली  शायद   
कोई  झोका कभी  आया
नहीं दिखता  मगर    चेहरा
 पानी बारिश ने है फेलाया    
रंग  भी है  पड़े फीके
उखड़ती पपडिया चीखे
रौशनी की किसे सुध है
ख़ामोशी ने दिल बहलाया
हवा के झोको ने  पूछा महल के वीरानो से
क्या आता जाता है कोई
इन बंद दरवाजो से

कृते अंकेश

Friday, June 22, 2012

Have u ever seen the air moving high and high
known as wind when it flies
people say it takes
the warmth of earth
to spread it
all across the world
Those who are in love
may hope for a rain
as it gives a chance
to go insane
but those who are  secluded

from the worldly desires
may find it irritating
bringing back the fire

To my surprise
Its just a matter
which somehow can make
everyone's life better.




Ankesh

 

Wednesday, June 20, 2012

कुछ भी शेष नहीं उसका मेरे पास 
मेरे सिवा 

अंकेश

Wednesday, June 13, 2012

स्वर थे अनजान
न कुछ पहचान
न लय, न सुर, न ताल
अनकहे सवाल
व्यर्थ का  ववाल
पुकारता यह  मन
चला जा अपनी धुन
उत्श्रंखल बासुरी
सदा यु ही बजी
उर्वशी कहो
कहा को तुम चली
ढूढ़ते है मेघ
हृदय के राग को
छिपे हुए कही
किसी चिराग को
स्वप्न में भी जो
रहा सदा  है मौन
 जानते हो  क्या
भला वह है कौन ?

अंकेश

Sunday, June 10, 2012

मेने स्वरों को तोड़ कर
अपनी लयो  को छोड़ कर
जीना था सीखा फिर कही 
तेरी नज़र से  जोड़ कर
रंगों की वो  महफ़िल नयी
थी शाम भी कुछ अनकही
रिश्ते नए बनते गए
बस साथ हम  चलते गए

अंकेश
यदि नहीं बन पाए जीवन
जैसा तुमने सोचा था
अपना लेना सत्य मान कर
वरना शोक इसे सस्ता कर देगा

अंकेश

Friday, June 08, 2012

सूक्ष्मता 
इतनी विरल 
जटिलता या सरल 
गहन गूढ़ चितन में लुप्त मन अविरल 
प्रश्न यह निश्चल 
जीवंत मुखर तरल 
अनुत्तरित प्रस्तावना सकल 
चाहे आज या कल 
समय चंचल  
चल दो कदम तो चल 

अंकेश 
आखिरी थी बूँद जो 
उड़ गयी वह भी लो 
रक्त क्या नसों में अब न जल रहा 
पर तुम तो सबसे बेखबर 
देखते न एक नज़र 
तुमको क्या पता यहाँ क्या चल रहा 

Thursday, June 07, 2012

विकास या बकवास
क्या है मिला हमें
जब जब बोला कुछ
बता दिए अर्थशास्त्र के जटिल शब्द
कीमतों का जाल
रुपये का हाल
गरीब की खाल
भला किसको है इनका ख्याल 
आप तो रहते हो
सपनो के महल में
मेरे आकाश में तो तपता सूरज है
बारिशे बहा ले जाती है मेरा समेटा हुआ घर
फिर पूछते हो मुझे क्या चुभन है
में तो जीता हूँ उम्मीदों से
की आने वाले पल में कभी तो हसूंगा 
आप मौका ही नहीं देते
में निस्वर हूँ
आपके राष्ट्र का एक सामान्य नागरिक

अंकेश

Saturday, June 02, 2012

तुम क्यों उदास हो
देखो उस छोटे बच्चे को
जो पल भर पहले भूख से रोता था
तितली को देखकर किस तरह हस रहा है
जाने उन पंखो में ऐसा  क्या जादू है
उड़ा ले गयी पल भर में एक उदास मन को
और छोड़ गयी बस एक नादान बचपन

अंकेश