Sunday, February 24, 2013

परिधियो  में बीत  रहे थे स्वप्न
खीचते सीमाएं  बार बार
उभरते बादल नभ के श्वेत
बरसते बेबस हो हर  एक बार

श्याम था तेरे नयनो का रंग
निशा ने छीना वर्ण विकार
मधुर अधरों के बिखरे पाश
सजाये  शहर तेरा है आज

ढूंढता में जिसको हर पल
छवि  मधुरित  जिसका विस्तार
कही  खोयी स्वप्नों में रही
 रहा  उन स्वप्नों का इंतज़ार

कृते  अंकेश 

Friday, February 22, 2013

गलिया भागती रही
रास्ते बदलते  रहें
लोग मिलते और बिछुड़ते रहे
शहर  ने भी सीख लिया फिर
धीरे धीरे बदलना
व्यर्थ है
यहाँ  इंतज़ार करना
अब  चकाचौंध में शहर की
थम रही भीड़ भी 
ढूंढती आँखे  वही
जो हुई कभी  दूर  थी 

कृते  अंकेश

Monday, February 11, 2013

तकदीर अगर यह कह दे मुझे 
तस्वीर तेरी मंज़ूर नहीं 
आँखों की चमक साँसों की दमक 
इनका अब कोई दस्तूर नहीं 
में फितरत फिर भी रखता हूँ 
अपने ही सहारे आऊंगा 
सपने देखे है बरसो से 
उनको में खुद ही सजाऊंगा 
वो कहते है इन गलियों में 
मेरे कदमो की गूंज नहीं 
आते है लोग हजारो में 
मेरा उनमे कुछ मोल नहीं 
मुझको उनसे न शिकायत है 
न उनको मेरी जरूरत है 
मेरी हस्ती है छोटी सी 
और पाक यह  मेरी मुहब्बत है 
 
कृते अंकेश 

Sunday, February 10, 2013

यु तो बहुत  आएँगी रातें 
बहुत आयेंगे सपने 
पर शायद उनसे से कुछ ही 
बन पाएंगे अपने 
यही सोच कर अभी में दिन दिन 
रात रात भर सोता 
शायद मिल जाये वो सपना 
जो सच है हो सकता 
फिर दुनिया मुट्ठी में होगी 
सुन लो मेरी बात 
बदल जाएगी तक़दीर भी मेरी 
उस सपने के साथ 

कृते अंकेश 

Tuesday, February 05, 2013

देखो माँ बेटा तुम्हारा आज सपनो में खड़ा है 
साथ तुम हो मेरे हमेशा होसला इसका बड़ा है 
दूर तुमसे में कहा तुम हो सदा मुझमे कही 
रास्ता मुझको यहाँ  बस तुम ही तो दिखाती रही 

तेरे सिखाये शब्द ही में जोड़ कर कहता गया 
कुछ गीत बन कर छप गए, में साथ में बहता गया
रंजो खबर क्या  दौर की,  क्या वक़्त के है मायने
शागिर्द तेरे हुक्म के, इनका न कद तुम्हारे सामने 

कृते अंकेश