Thursday, November 29, 2012

कितनी धूल उड़ाओगे 
तुम कितना आगे जाओगे  
टूटे घर से जाती सडको पर क्या लोट कभी तुम आओगे 
बिखरे बालो में घूम रहे 
ले हाथो में सपनो को झूम रहे 
इन नादाँ हाथो से कितनी और पतंग कटवाओगे 
तुम कितना आगे जाओगे 
बेचा मिटटी को सपनो को 
लूटा किसको है  अपनों को 
इन पैसो की खातिर कब तक इंसानियत ठुकराओगे 
तुम कितना आगे जाओगे 

कृते अंकेश 

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