Saturday, November 03, 2012


शोक संतृप्त  भर दृगो में नीर  को 
शोभता है नहीं इस धरा के वीर को
बढ चलो पथ  सामने है
 शत्रु  का संहार कर
पार्थ अपने देख सामने न कर्त्तव्य से इनकार कर

कृते  अंकेश  
  

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