Saturday, November 03, 2012


सजती सभा स्वाधीनता
सम्राट सा सम्मान है
सम्पूर्ण सृष्टि सार सरिता
सज रहा सुरधाम है
स्वतंत्र स्वयंभू स्वराज्य का
हो रहा उदघोष  है
लहरा रहा  तिरंगा
हर साँस में अब जोश है 

इस तिरंगे में छिपे है 
सेकड़ो तप त्याग के 
छोड़ वैभव को गए जो 
हसते  इस संसार से 
ढूंढता योवन जिन्हें था
दे रहे थे आहुति 
शूलिया थी थक गयी 
उनकी  कहानी न रुकी 

ओज के वो पुष्प थे 
थे इस धरा के पुत्र वो 
रच  गए इतिहास  स्वर्णिम   
मृत्यु से अभिरुद्द हो
देखती थी स्वप्न जो
आँखे हमेशा वो रही 
है  हकीकत  सामने  
उपहार उनकी देन ही 

नाद मस्तक ताल हृदय 
बढ  रहे  अविराम है 
प्रेरणा उनसे मिली 
जीवन नहीं विश्राम है 
स्वप्न है बस अब सजाना 
बाकि क्या जिए और क्या मरे 
और क्या वह जिंदगी 
जो न हुई राष्ट्र  के लिए 

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