Tuesday, November 20, 2012

उषा की लालिमा के पदचिन्ह शेष थे 
खुले खुले से कैश थे 
तलाशती रही धरा 
वो भाव ही विशेष थे 
अन्तरंग था छिपा 
व्योम था खिला हुआ 
योवन की श्रेष्टता में 
सज रहे श्रृंगार थे 
नेत्र भाव थे विमुख 
मुक्त अधर दीप्ति युक्त 
भाव भंगिमा में रहे
सर्व कर ताल थे
ढूंढता था शेष को
योवन विशेष को
यदा कदा भटक रहे
सौन्दर्य पद जाल थे

कृते अंकेश

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