Saturday, November 17, 2012

श्रम के मोलो में है डूबी 
रात भी कैसी विचित्र 
सेकड़ो काया जगी है 
क्षुब्ध क्षुधा में संक्षिप्त 

है महल में खोजती 
स्वप्न योवन की कहानी 
रास्ते में मिट रही है 
सेकड़ो बस यु ही जवानी 

स्वर विषमता के सजे है
अब कहा संग्राम है
आपका क्या फिर हसोगे
आपको आराम है

मेरे घर की छत है सूरज
बस पिघलते दिन रात है
बारिशे ले जाती बहा
जो कुछ भी पास है

में नहीं हूँ मांगता
महल की एक साख हूँ
हूँ श्रमिक श्रम धर्म मेरा
शोषण के खिलाफ हूँ

कृते अंकेश

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