Saturday, November 24, 2012

पंख पसारे चला परिंदा 
आसमान में उड़ता सपना 
आँखों में तस्वीर है कल की 
साया लगता जैसे अपना 

सीमा उसकी नहीं बंधी है 
आँखे उसकी कहा झुकी  है 
उसकी तो बस प्यास एक है 
मंजिल उसकी अभी शेष है 

सूरज की किरणों में तकता 
गीत सुनहरे सपने कल के 
चन्द्र किरण की  शीतलता में 
जुड़ते अंक स्वप्न के पहरे 

बस मुस्कानों से  पा  जाता 
 ऊर्जा फिर  फिर चलने भर की  
उस मानस के मस्तक पट पर 
रहती सदा तेज़ की लहरी 

कृते अंकेश 

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