Friday, November 23, 2012

देखकर मुस्कान अधरों में कही वो खो गए 
सेकड़ो की भीड़ से ऐसे अलग वो हो गए 
महफिले सजती गयी, लोग भी बढते गए 
बेखबर इनसे कही वो, बस अकेले हो गए 

मिट रही थी दूरियां घट रहे थे फासले
फिर जुड़े जो नयन, नैनो को इशारे फिर मिले
और फिर न जाने क्यों, आँखों ने शर्म ओढ़ ली
देखकर उन आँखों को, आँखे कही फिर खिल उठी

और बस नैनों से ऐसे इशारे चलते रहे
बिन कहे और बिन सुने ख्वाब ही पलते रहे
थी कहानी भीड़ की, थी कहानी एकांत की
लेकिन कहानी थी मधुर, थी रही जो शांत ही

कृते अंकेश

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