Saturday, November 10, 2012

प्रीत मुझे समझाए कोई अब 
भूल गया में सपने कबके 
रंग है मेरे बरसे नैना 
नैनो में खोये है सपने 
प्रीत मुझे समझाए  कोई अब 

अधरों की मुस्कान ने खोयी 
बीते कल की मधुरिम यादें 
 नैनों में बस रही पिघलती 
छिपी कही थी जो बरसातें
भींगे  इस तन को फिर कैसे 
बोलो अब में शुष्क बनाऊ
प्रीत मुझे समझाए कोई अब 
प्रीत मुझे समझाए कोई अब 

कहते है कुछ चल दो फिर से
छोड़ो दुविधा रच लो सपने 
कैसे खुद को मैं समझाऊ 
सपनो को जब पास बुलाऊ 
फिर फिर से में उसको पाऊ 
छोड़ जिसे में पथ तक आऊ
प्रीत मुझे समझाए कोई अब 
 
कृते अंकेश 

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