Saturday, November 03, 2012

खेलते खेलते ही कहा छोड़ दिया तुम्हे 
मुझे याद ही नहीं 
ओ बचपन
खेल ही खेल मैं न जाने कितने आंसुओ को हम हँसा जाते थे 
शरारतो से हमारी घर गूंजा करता था 
छोटे बड़े सभी तो हमसे खिलखिला कर हसते थे 
आसमा तक जाने के सपने सजते थे 
वो खिलोने आज भी इंतज़ार में है 
की शायद फिर से कोई खेलने आएगा 
शायद खामोशियो को फिर से तोडा जायेगा 
तेरे जाने के बाद एक भीड़ में छिप गए है हम 
भीड़ जो बस बदती ही जाती है 
भीड़ जो अँधेरे के गर्द तक जाती है 
सिरहानो को लिए पीता  हूँ 
अब तो बस तेरी यादो में जीता हूँ 
क्या तुम कभी आओगे ओ बचपन 
क्या मुझे फिर से अपने साथ ले जाओगे ओ बचपन 

कृते अंकेश  

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