Saturday, November 10, 2012

श्याम तेरी बंसी के सुर से नाचे जाने कितने दिल थे
में तो  थी  बस बनी बावरी  इस मौसम में भी सावन थे
श्याम तेरी बंसी के सुर से ........

पनघट पर थी  मटकी  छोड़ी
तेरी बंसी ने   राह मोड़ी
भूल    गए हम सारे किनारे
चले जहा  बस बंसी पुकारे
 श्याम तेरी बंसी के सुर से ........

ओ नटखट  ओ नन्द के लाला
तेरी चाह  में ढला उजाला
तेरे रंग  निराले कितने
श्याम को देखू  श्यामल जग में

फिर फिर ढलता जाये अँधेरा
मनमोहक है कहा बसेरा
तेरी खोज में रतिया बीते
बढती  जाये फिर भी प्रीते

श्याम तेरी बंसी के सुर से नाचे जाने कितने दिल थे
में तो  थी  बस बनी बावरी  इस मौसम में भी सावन थे

कृते  अंकेश

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