Saturday, April 19, 2014

भौर भयी मन
खोल रे अखिया
आती किरण भी
जगती है सखियाँ
लाये नये रंग
दिन का उजाला
कोई सजायें
सपनो का प्याला
खेले कोई
पलको के किनारे 
करता रहे कोई
बस यू इशारे
सपनो की धुन में
कोई है जाता
पवनो का झोका
हमे भी झुलाता
मन मेरा जैसे
वासुंदी खाये
आकर हमे भी
कोई जगाये

कृते अंकेश

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