Tuesday, April 08, 2014


कुछ कविताये छोड़ कर गया था
आकर देखा तो स्वीपर ने फेक दिया था कूड़े में
बेकार का समझकर
उसने तो गिनी भी नहीं होगी
कितनी कवितायेँ है
मेरे कहने पर बोला
सर आप कहे तो कुछ कविता लाकर दूंगा में
मेरी बस्ती में भी एक आदमी कवितायेँ लिखता है
फेक देता है कभी कभी मेरे कूड़े में
आपके जैसे ही पेज होते है कुछ खाली कुछ भरे 
मुझे उसका प्रस्ताव अच्छा लगा
सोचा इसी बहाने कुछ नयी कवितायेँ पड़ने को मिलेंगी
और कूड़े में जा चुकी कवितायेँ अपनी किस्मत पर पछतावा नहीं करेंगी

कृते अंकेश

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