Saturday, April 19, 2014


जो कहते है
इन इंसानो को
आता ही नहीं चलना, उड़ना
जाना ही क्या है, उनने अभी
सपना इंसा का है अपना
उड़ता है वो, बहता है वो
रहता है वो, अपने में मगन
यह दुनिया अभी इस काबिल न
समझे जो उस इंसा का मन
रंगता है वो, लिखता है वो 
छेड़ा करता है धुन भी नयी
माना कुछ शब्द है मिले नहीं
पर यु कविता रही न अधूरी कभी
उसको इन सपनो को चुनकर
है रंग हकीकत में ढल जाना
चेहरे बदलेंगे सपने भी
पर हर सपने को सच कर जाना

कृते अंकेश

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