Saturday, April 19, 2014

फागुन की रिमझिम की झिम झिम
भींझ रही गलियन, गलियन के जन
पोखर बन गयी सिगरी गलिया
बाल चलावे नावन की नदिया
लगो की आयो फिर से सावन
छाड़ लाज़ भींजत है जन मन
फागुन की रिमझिम की झिम झिम

फिर फिर आवत जाड़े की कपकप
होली जले तो आवे राहत 
त्योहारन को लगो महीना
जमके सबको भंग है पीना
करत रहे सब बस यह बतिया ठोरे
फागुन कि कछु बातही औरे

फागुन की रिमझिम की झिम झिम

कृते अंकेश

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