Monday, January 07, 2013

स्वप्नों के बोझिल दाग कही जब हलके हलके हटते है
पलकों के साए छिपे रहे ख्वाब उड़ाने भरते है 
स्वर्णिम किरणों का जाल लिए सूरज छत पर आ जाता है
पंखो में उड़ने को ठान लिए पंक्षी मधुरिम स्वर में गाता है 
नव उर्जा का संचार किये ऐसी सुबह जब आती है 
स्वप्नों को सत्य बनाने को यह दुनिया फिर से लग जाती है 
मोल लगाती है श्रम का, आनद को तोला करती है 
एक सुखद कल की आशा में जीवन का सौदा करती है 
लिखती है अपने रक्तो से अपने प्रियजन की खुशियों को
उडती है उन्मादों में मोहित स्वप्नों का सत्य सजोने को
नव उर्जा का संचार किये ऐसी सुबह जब आती है
स्वप्नों को सत्य बनाने को यह दुनिया फिर से लग जाती है

कृते अंकेश

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