Monday, January 14, 2013

नंग धड़ंगी अति भयावह भीषण काया 
किट्ट काला कर्कश कुबड़ा सा वह साया 
बोझ तले उसके निरीह जानवर भागता 
अपनी तलवारों से नरमुंडो को काटता  
थर थर काप रहे थे लोग जहा वो जाये 
हर ओर छोर से रक्तो की नदिया रहा बहाए 

देख राज का राजतिलक भू में जा बिखरा 
उसकी हूकारो से आसमान तक फिकरा 
बस उड़ता वो चला पवन के साथ यु आगे 
मानो स्वय शिवा दोड रहे प्रलय मचाके 
बस एक रहा वो  और न कोई नज़र था आता 
क्या सचमुच था वो इस सृष्टि का भाग्य विधाता 

कृते अंकेश 

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